Samaysar (Hindi). Gatha: 333-338.

< Previous Page   Next Page >


Page 480 of 642
PDF/HTML Page 513 of 675

 

background image
४८०
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
कम्मेहि सुहाविज्जदि दुक्खाविज्जदि तहेव कम्मेहिं
कम्मेहि य मिच्छत्तं णिज्जदि णिज्जदि असंजमं चेव ।।३३३।।
कम्मेहि भमाडिज्जदि उड्ढमहो चावि तिरियलोयं च
कम्मेहि चेव किज्जदि सुहासुहं जेत्तियं किंचि ।।३३४।।
जम्हा कम्मं कुव्वदि कम्मं देदि हरदि त्ति जं किंचि
तम्हा उ सव्वजीवा अकारगा होंति आवण्णा ।।३३५।।
पुरिसित्थियाहिलासी इत्थीकम्मं च पुरिसमहिलसदि
एसा आयरियपरंपरागदा एरिसी दु सुदी ।।३३६।।
तम्हा ण को वि जीवो अबंभचारी दु अम्ह उवदेसे
जम्हा कम्मं चेव हि कम्मं अहिलसदि इदि भणिदं ।।३३७।।
जम्हा घादेदि परं परेण घादिज्जदे य सा पयडी
एदेणत्थेणं किर भण्णदि परघादणामेत्ति ।।३३८।।
अरि कर्म ही करते सुखी, कर्महि दुखी जीवको करें
कर्महि करे मिथ्यात्वि त्योंहि, असंयमी कर्महि करें ।।३३३।।
कर्महि भ्रमावे ऊर्ध्व लोक रु, अधः अरु तिर्यक् विषैं
अरु कुछ भी जो शुभ या अशुभ, उन सर्वको कर्महि करें ।।३३४।।
करता करम, देता करम, हरता करमसब कुछ करे
इस हेतुसे यह है सुनिश्चित जीव अकारक सर्व हैं ।।३३५।।
‘पुंकर्म इच्छे नारिको, स्त्रीकर्म इच्छे पुरुषको’
ऐसी श्रुती आचार्यदेव परंपरा अवतीर्ण है ।।३३६।।
इस रीत ‘कर्महि कर्मको इच्छै’कहा है शास्त्रमें
अब्रह्मचारी यों नहीं को जीव हम उपदेशमें ।।३३७।।
अरु जो हने परको, हनन हो परसे, सोई प्रकृति है
इस अर्थमें परघात नामक कर्मका निर्देश है ।।३३८।।