[इति भणितम् ] ऐसा कहा है ।
और, [यस्मात् परं हन्ति ] जो परको मारता है [च ] और [परेण हन्यते ] जो परके द्वारा मारा जाता है [सा प्रकृतिः ] वह प्रकृ ति है — [एतेन अर्थेन किल ] इस अर्थमें [परघातनाम इति भण्यते ] परघातनामक र्म क हा जाता है, [तस्मात् ] इसलिये [अस्माकम् उपदेशे ] हमारे उपदेशमें [कः अपि जीवः ] कोई भी जीव [उपघातकः न अस्ति ] उपघातक (मारनेवाला) नहीं है, [यस्मात् ] क्योंकि [कर्म च एव हि ] क र्म ही [कर्म हन्ति ] क र्मको मारता है [इति भणितम् ] ऐसा कहा है ।’’
(आचार्यदेव क हते हैं कि : — ) [एवं तु ] इसप्रकार [ईदृशं साङ्खयोपदेशं ] ऐसा सांख्यमतका उपदेश [ये श्रमणाः ] जो श्रमण (जैन मुनि) [प्ररूपयन्ति ] प्ररूपित करते हैं, [तेषां ] उनके मतमें [प्रकृतिः करोति ] प्रकृ ति ही क रती है [आत्मानः च सर्वे ] और आत्मा तो सब [अकारकाः ] अकारक हैं ऐसा सिद्ध होता है !
[अथवा ] अथवा (क र्तृत्वका पक्ष सिद्ध करनेके लिये) [मन्यसे ] यदि तुम यह मानते हो कि ‘[मम आत्मा ] मेरा आत्मा [आत्मनः ] अपने [आत्मानम् ] (द्रव्यरूप) आत्माको [करोति ] क रता है’, [एतत् जानतः तव ] तो ऐसा जाननेवालेका – तुम्हारा [एषः मिथ्यास्वभावः ] यह मिथ्यास्वभाव है (अर्थात् ऐसा जानना वह तेरा मिथ्यास्वभाव है); [यद् ] क्योंकि — [समये ] सिद्धांतमें [आत्मा ] आत्माको [नित्यः ] नित्य, [असङ्खयेयप्रदेशः ] असंख्यात-प्रदेशी [दर्शितः तु ] बताया गया है, [ततः ] उससे [सः ] वह [हीनः अधिकः च ] हीन या अधिक [कर्तुं न