Samaysar (Hindi). Gatha: 354-355.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
४९७
जह सिप्पिओ दु चेट्ठं कुव्वदि हवदि य तहा अणण्णो से
तह जीवो वि य कम्मं कुवदि हवदि य अणण्णो से ।।३५४।।
जह चेट्ठं कुव्वंतो दु सिप्पिओ णिच्चदुक्खिओ होदि
तत्तो सिया अणण्णो तह चेट्ठंतो दुही जीवो ।।३५५।।
यथा शिल्पिकस्तु कर्म करोति न च स तु तन्मयो भवति
तथा जीवोऽपि च कर्म करोति न च तन्मयो भवति ।।३४९।।
यथा शिल्पिकस्तु करणैः करोति न च स तु तन्मयो भवति
तथा जीवः करणैः करोति न च तन्मयो भवति ।।३५०।।
यथा शिल्पिकस्तु करणानि गृह्णाति न स तु तन्मयो भवति
तथा जीवः करणानि तु गृह्णाति न च तन्मयो भवति ।।३५१।।
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शिल्पी करे चेष्टा अवरु, उस ही से शिल्पी अनन्य है
त्यों जीव कर्म करे अवरु, उस ही से जीव अनन्य है ।।३५४।।
चेष्टित हुआ शिल्पी निरन्तर दुखित जैसे होय है
अरु दुखसे शिल्पि अनन्य, त्यों जीव चेष्टमान दुखी बने ।।३५५।।
गाथार्थ :[यथा ] जैसे [शिल्पिकः तु ] शिल्पी (स्वर्णकारसोनी आदि क लाकार)
[कर्म ] कुण्डल आदि क र्म (कार्य) [करोति ] क रता है, [सः तु ] परन्तु वह [तन्मयः न च भवति ]
तन्मय (उस-मय, कुण्डलादिमय) नहीं होता, [तथा ] उसीप्रकार [जीवः अपि च ] जीव भी [कर्म ]
पुण्यपापादि पुद्गलक र्म [करोति ] क रता है, [न च तन्मयः भवति ] परन्तु तन्मय (पुद्गलक र्ममय)
नहीं होता
[यथा ] जैसे [शिल्पिकः तु ] शिल्पी [करणैः ] हथौड़ा आदि क रणों(साधनों)के द्वारा
[करोति ] (क र्म) क रता है, [सः तु ] परन्तु वह [तन्मयः न भवति ] तन्मय (हथौड़ा आदि
क रणमय) नहीं होता, [तथा ] उसीप्रकार [जीवः ] जीव [करणैः ] (मन-वचन-कायरूप)
क रणोंके द्वारा [करोति ] (क र्म) क रता है, [न च तन्मयः भवति ] परंतु तन्मय (मन-वचन-
कायरूप क रणमय) नहीं होता
[यथा ] जैसे [शिल्पिकः तु ] शिल्पी [करणानि ] क रणोंको
[गृह्णाति ] ग्रहण क रता है, [सः तु ] परन्तु वह [तन्मयः न भवति ] तन्मय नहीं होता, [तथा ]
उसीप्रकार [जीवः ] जीव [करणानि तु ] क रणोंको [गृह्णाति ] ग्रहण क रता है, [न च तन्मयः भवति ]