कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
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जह सिप्पिओ दु चेट्ठं कुव्वदि हवदि य तहा अणण्णो से ।
तह जीवो वि य कम्मं कुवदि हवदि य अणण्णो से ।।३५४।।
जह चेट्ठं कुव्वंतो दु सिप्पिओ णिच्चदुक्खिओ होदि ।
तत्तो सिया अणण्णो तह चेट्ठंतो दुही जीवो ।।३५५।।
यथा शिल्पिकस्तु कर्म करोति न च स तु तन्मयो भवति ।
तथा जीवोऽपि च कर्म करोति न च तन्मयो भवति ।।३४९।।
यथा शिल्पिकस्तु करणैः करोति न च स तु तन्मयो भवति ।
तथा जीवः करणैः करोति न च तन्मयो भवति ।।३५०।।
यथा शिल्पिकस्तु करणानि गृह्णाति न स तु तन्मयो भवति ।
तथा जीवः करणानि तु गृह्णाति न च तन्मयो भवति ।।३५१।।
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शिल्पी करे चेष्टा अवरु, उस ही से शिल्पी अनन्य है ।
त्यों जीव कर्म करे अवरु, उस ही से जीव अनन्य है ।।३५४।।
चेष्टित हुआ शिल्पी निरन्तर दुखित जैसे होय है ।
अरु दुखसे शिल्पि अनन्य, त्यों जीव चेष्टमान दुखी बने ।।३५५।।
गाथार्थ : — [यथा ] जैसे [शिल्पिकः तु ] शिल्पी ( – स्वर्णकार – सोनी आदि क लाकार)
[कर्म ] कुण्डल आदि क र्म (कार्य) [करोति ] क रता है, [सः तु ] परन्तु वह [तन्मयः न च भवति ]
तन्मय (उस-मय, कुण्डलादिमय) नहीं होता, [तथा ] उसीप्रकार [जीवः अपि च ] जीव भी [कर्म ]
पुण्यपापादि पुद्गलक र्म [करोति ] क रता है, [न च तन्मयः भवति ] परन्तु तन्मय (पुद्गलक र्ममय)
नहीं होता । [यथा ] जैसे [शिल्पिकः तु ] शिल्पी [करणैः ] हथौड़ा आदि क रणों(साधनों)के द्वारा
[करोति ] (क र्म) क रता है, [सः तु ] परन्तु वह [तन्मयः न भवति ] तन्मय (हथौड़ा आदि
क रणमय) नहीं होता, [तथा ] उसीप्रकार [जीवः ] जीव [करणैः ] (मन-वचन-कायरूप)
क रणोंके द्वारा [करोति ] (क र्म) क रता है, [न च तन्मयः भवति ] परंतु तन्मय (मन-वचन-
कायरूप क रणमय) नहीं होता । [यथा ] जैसे [शिल्पिकः तु ] शिल्पी [करणानि ] क रणोंको
[गृह्णाति ] ग्रहण क रता है, [सः तु ] परन्तु वह [तन्मयः न भवति ] तन्मय नहीं होता, [तथा ]
उसीप्रकार [जीवः ] जीव [करणानि तु ] क रणोंको [गृह्णाति ] ग्रहण क रता है, [न च तन्मयः भवति ]