गाथार्थ : — [यथा ] जैसे [शिल्पिकः तु ] शिल्पी ( – स्वर्णकार – सोनी आदि क लाकार) [कर्म ] कुण्डल आदि क र्म (कार्य) [करोति ] क रता है, [सः तु ] परन्तु वह [तन्मयः न च भवति ] तन्मय (उस-मय, कुण्डलादिमय) नहीं होता, [तथा ] उसीप्रकार [जीवः अपि च ] जीव भी [कर्म ] पुण्यपापादि पुद्गलक र्म [करोति ] क रता है, [न च तन्मयः भवति ] परन्तु तन्मय (पुद्गलक र्ममय) नहीं होता । [यथा ] जैसे [शिल्पिकः तु ] शिल्पी [करणैः ] हथौड़ा आदि क रणों(साधनों)के द्वारा [करोति ] (क र्म) क रता है, [सः तु ] परन्तु वह [तन्मयः न भवति ] तन्मय (हथौड़ा आदि क रणमय) नहीं होता, [तथा ] उसीप्रकार [जीवः ] जीव [करणैः ] (मन-वचन-कायरूप) क रणोंके द्वारा [करोति ] (क र्म) क रता है, [न च तन्मयः भवति ] परंतु तन्मय (मन-वचन- कायरूप क रणमय) नहीं होता । [यथा ] जैसे [शिल्पिकः तु ] शिल्पी [करणानि ] क रणोंको [गृह्णाति ] ग्रहण क रता है, [सः तु ] परन्तु वह [तन्मयः न भवति ] तन्मय नहीं होता, [तथा ] उसीप्रकार [जीवः ] जीव [करणानि तु ] क रणोंको [गृह्णाति ] ग्रहण क रता है, [न च तन्मयः भवति ]