यथा खलु शिल्पी सुवर्णकारादिः कुण्डलादि परद्रव्यपरिणामात्मकं कर्म करोति, परन्तु तन्मय (क रणमय) नहीं होता । [यथा ] जैसे [शिल्पी तु ] शिल्पी [कर्मफलं ] कुण्डल आदि क र्मके फलको (खान-पानादिको) [भुंक्ते ] भोगता है, [सः तु ] परन्तु वह [तन्मयः न च भवति ] तन्मय (खान-पानादिमय) नहीं होता, [तथा ] उसीप्रकार [जीवः ] जीव [कर्मफलं ] पुण्यपापादि पुद्गलक र्मके फलको (पुद्गलपरिणामरूप सुखदुःखादिको) [भुंक्ते ] भोगता है, [न च तन्मयः भवति ] परन्तु तन्मय (पुद्गलपरिणामरूप सुखदुःखादिमय) नहीं होता ।
[एवं तु ] इसप्रकार तो [व्यवहारस्य दर्शनं ] व्यवहारका मत [समासेन ] संक्षेपसे [वक्तव्यं ] क हने योग्य है । [निश्चयस्य वचनं ] (अब) निश्चयका वचन [शृणु ] सुनो [यत् ] जो कि [परिणामकृतं तु भवति ] परिणामविषयक है ।
[यथा ] जैसे [शिल्पिकः तु ] शिल्पी [चेष्टां करोति ] चेष्टारूप क र्म (अपने परिणामरूप क र्म)को क रता है [तथा च ] और [तस्याः अनन्यः भवति ] उससे अनन्य है, [तथा ] उसीप्रकार [जीवः अपि च ] जीव भी [क र्म क रोति ] (अपने परिणामरूप) क र्मको क रता है [च ] और [तस्मात् अनन्यः भवति ] उससे अनन्य है । [यथा ] जैसे [चेष्टां कुर्वाणः ] चेष्टारूप क र्म क रता हुआ [शिल्पिकः तु ] शिल्पी [नित्यदुःखितः भवति ] नित्य दुःखी होता है [तस्मात् च ] और उससे (दुःखसे) [अनन्यः स्यात् ] अनन्य है, [तथा ] उसीप्रकार [चेष्टमानः ] चेष्टा क रता हुआ (अपने परिणामरूप क र्मको क रता हुआ) [जीवः ] जीव [दुःखी ] दुःखी होता है (और दुःखसे अनन्य है) ।
टीका : — जैसे — शिल्पी (स्वर्णकार आदि कलाकार) कुण्डल आदि जो परद्रव्यपरिणामात्मक कर्म करता है, हथौड़ा आदि परद्रव्यपरिणामात्मक करणोंके द्वारा करता है,