करणानि गृह्णाति, ग्रामादिपरद्रव्यपरिणामात्मकं कुण्डलादिकर्मफलं भुंक्ते च, नत्वनेकद्रव्यत्वेन
ततोऽन्यत्वे सति तन्मयो भवति; ततो निमित्तनैमित्तिकभावमात्रेणैव तत्र कर्तृकर्मभोक्तृ-
भोग्यत्वव्यवहारः; तथात्मापि पुण्यपापादि पुद्गलद्रव्यपरिणामात्मकं कर्म करोति, कायवाङ्मनोभिः
पुद्गलद्रव्यपरिणामात्मकैः करणैः करोति, कायवाङ्मनांसि पुद्गलद्रव्यपरिणामात्मकानि करणानि
गृह्णाति, सुखदुःखादि पुद्गलद्रव्यपरिणामात्मकं पुण्यपापादिकर्मफलं भुंक्ते च, न त्वनेकद्रव्यत्वेन
ततोऽन्यत्वे सति तन्मयो भवति; ततो निमित्तनैमित्तिकभावमात्रेणैव तत्र
कर्तृकर्मभोक्तृभोग्यत्वव्यवहारः
तन्मयश्च भवति; ततः परिणामपरिणामिभावेन तत्रैव कर्तृकर्मभोक्तृभोग्यत्वनिश्चयः; तथात्मापि
चिकीर्षुश्चेष्टारूपमात्मपरिणामात्मकं कर्म करोति, दुःखलक्षणमात्मपरिणामात्मकं चेष्टारूपकर्मफलं
परद्रव्यपरिणामात्मक फल भोगता है, किन्तु अनेकद्रव्यत्वके कारण उनसे (कर्म, करण आदिसे)
अन्य होनेसे तन्मय (कर्मकरणादिमय) नहीं होता; इसलिये निमित्त-नैमित्तिकभावमात्रसे ही वहाँ
कर्तृकर्मत्वका और भोक्तृभोग्यत्वका व्यवहार है; इसीप्रकार
पुद्गलद्रव्यपरिणामात्मक करण उनको ग्रहण करता है और पुण्यपापादि कर्मका जो सुख-दुःखादि
पुद्गलद्रव्यपरिणामात्मक फल उसको भोगता है, परंतु अनेकद्रव्यत्वके कारण उनसे अन्य होनेसे
तन्मय नहीं होता; इसलिये निमित्त-नैमित्तिकभावमात्रसे ही वहाँ कर्तृ-कर्मत्वका और भोक्तृ-
भोग्यत्वका व्यवहार है
करता है, तथा दुःखस्वरूप ऐसा जो चेष्टारूप कर्मका स्वपरिणामात्मक फल उसको भोगता है
और एकद्रव्यत्वके कारण उनसे (कर्म और कर्मफलसे) अनन्य होनेसे तन्मय (कर्ममय और
कर्मफलमय) है; इसलिये परिणाम-परिणामीभावसे वहीं कर्ता-कर्मपनका और भोक्ता
-भोग्यपनका निश्चय है; उसीप्रकार