Samaysar (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


Page 514 of 642
PDF/HTML Page 547 of 675

 

background image
५१४
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
स्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमानमात्मनः स्वभावेन श्वेतयतीति व्यवह्रियते, तथा चेतयितापि
ज्ञानदर्शनगुणनिर्भरपरापोहनात्मकस्वभावः स्वयं पुद्गलादिपरद्रव्यस्वभावेनापरिणममानः पुद्गलादि-
परद्रव्यं चात्मस्वभावेनापरिणमयन् पुद्गलादिपरद्रव्यनिमित्तकेनात्मनो ज्ञानदर्शनगुणनिर्भर-
परापोहनात्मकस्वभावस्य परिणामेनोत्पद्यमानः पुद्गलादिपरद्रव्यं चेतयितृनिमित्तकेनात्मनः स्वभावस्य
परिणामेनोत्पद्यमानमात्मनः स्वभावेनापोहतीति व्यवह्रियते
एवमयमात्मनो ज्ञानदर्शनचारित्रपर्यायाणां निश्चयव्यवहारप्रकारः एवमेवान्येषां सर्वेषामपि
पर्यायाणां द्रष्टव्यः
परिणाम द्वारा उत्पन्न होनेवाले दीवार-आदि परद्रव्यको अपने (कलई)के स्वभावसे श्वेत करती
हैऐसा व्यवहार किया जाता है; इसीप्रकार जिसका ज्ञानदर्शनगुणसे परिपूर्ण, परके अपोहनस्वरूप
स्वभाव है ऐसा चेतयिता भी, स्वयं पुद्गलादि परद्रव्यके स्वभावरूप परिणमित नहीं होता हुआ
और पुद्गलादि परद्रव्यको अपने स्वभावरूप परिणमित न कराता हुआ, पुद्गलादि परद्रव्य जिसको
निमित्त है ऐसे अपने ज्ञानदर्शनगुणसे परिपूर्ण पर-अपोहनात्मक (
परके त्यागस्वरूप) स्वभावके
परिणाम द्वारा उत्पन्न होता हुआ, चेतयिता जिसको निमित्त है ऐसे अपने (पुद्गलादिके)
स्वभावके परिणाम द्वारा उत्पन्न होनेवाले पुद्गलादि परद्रव्यको अपने (चेतयिताके) स्वभावसे
अपोहता है अर्थात् त्याग करता हैइसप्रकार व्यवहार किया जाता है
इसप्रकार यह, आत्माके ज्ञान-दर्शन-चारित्र पर्यायोंका निश्चय-व्यवहार प्रकार है
इसीप्रकार अन्य समस्त पर्यायोंका भी निश्चय-व्यवहार प्रकार समझना चाहिए
भावार्थ :शुद्धनयसे आत्माका एक चेतनामात्र स्वभाव है उसके परिणाम जानना,
देखना, श्रद्धा करना, निवृत्त होना इत्यादि हैं वहाँ निश्चयनयसे विचार किया जाये तो आत्माको
परद्रव्यका ज्ञायक नहीं कहा जा सकता, दर्शक नहीं कहा जा सकता, श्रद्धान करनेवाला नहीं कहा
जा सकता, त्याग करनेवाला नहीं कहा जा सकता; क्योंकि परद्रव्यके और आत्माके निश्चयसे कोई
भी सम्बन्ध नहीं है
जो ज्ञान, दर्शन, श्रद्धान, त्याग इत्यादि भाव हैं, वे स्वयं ही हैं; भाव-भावकका
भेद कहना वह भी व्यवहार है, निश्चयसे भाव और भाव करनेवाला भेद नहीं है
अब, व्यवहारनयके सम्बन्धमें व्यवहारनयसे आत्माको परद्रव्यका ज्ञाता, द्रष्टा, श्रद्धान
करनेवाला, त्याग करनेवाला कहा जाता है; क्योंकि परद्रव्य और आत्माके निमित्त-नैमित्तिकभाव है
ज्ञानादि भावोंका परद्रव्य निमित्त होता है, इसलिये व्यवहारीजन कहते हैं किआत्मा परद्रव्यको
जानता है, परद्रव्यको देखता है, परद्रव्यका श्रद्धान करता है, परद्रव्यका त्याग करता है
इसप्रकार निश्चय-व्यवहारके प्रकारको जानकर यथावत् (जैसा कहा है उसीप्रकार) श्रद्धान
करना ।।३५६ से ३६५।।