कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
५१९
जीवस्य ये गुणाः केचिन्न सन्ति खलु ते परेषु द्रव्येषु ।
तस्मात्सम्यग्द्रष्टेर्नास्ति रागस्तु विषयेषु ।।३७०।।
रागो द्वेषो मोहो जीवस्यैव चानन्यपरिणामाः ।
एतेन कारणेन तु शब्दादिषु न सन्ति रागादयः ।।३७१।।
यद्धि यत्र भवति तत्तद्घाते हन्यत एव, यथा प्रदीपघाते प्रकाशो हन्यते; यत्र च
यद्भवति तत्तद्घाते हन्यत एव, यथा प्रकाशघाते प्रदीपो हन्यते । यत्तु यत्र न भवति
तत्तद्घाते न हन्यते, यथा घटघाते घटप्रदीपो न हन्यते; यत्र च यन्न भवति तत्तद्घाते
न हन्यते, यथा घटप्रदीपघाते घटो न हन्यते । अथात्मनो धर्मा दर्शनज्ञानचारित्राणि
पुद्गलद्रव्यघातेऽपि न हन्यन्ते, न च दर्शनज्ञानचारित्राणां घातेऽपि पुद्गलद्रव्यं हन्यते;
एवं दर्शनज्ञानचारित्राणि पुद्गलद्रव्ये न भवन्तीत्यायाति; अन्यथा तद्घाते पुद्गलद्रव्य-
(इसप्रकार) [ये केचित् ] जो कोई [जीवस्य गुणाः ] जीवके गुण हैं, [ते खलु ] वे
वास्तवमें [परेषु द्रव्येषु ] पर द्रव्यमें [न सन्ति ] नहीं हैं; [तस्मात् ] इसलिये [सम्यग्दृष्टेः ]
सम्यग्दृष्टिके [विषयेषु ] विषयोंके प्रति [रागः तु ] राग [न अस्ति ] नहीं है ।
[च ] और [रागः द्वेषः मोहः ] राग, द्वेष और मोह [जीवस्य एव ] जीवके ही
[अनन्यपरिणामाः ] अनन्य (एक रूप) परिणाम हैं, [एतेन कारणेन तु ] इस कारणसे [रागादयः ]
रागादिक [शब्दादिषु ] शब्दादि विषयोंमें (भी) [न सन्ति ] नहीं हैं ।
(रागद्वेषादि न तो सम्यग्दृष्टि आत्मामें हैं और न जड़ विषयोंमें, वे मात्र अज्ञानदशामें
रहनेवाले जीवके परिणाम हैं ।)
टीका : — वास्तवमें जो जिसमें होता है वह उसका घात होने पर नष्ट होता ही है (अर्थात्
आधारका घात होने पर आधेयका घात हो ही जाता है), जैसे दीपकके घात होने पर (उसमें
रहनेवाला) प्रकाश नष्ट हो जाता है; तथा जिसमें जो होता है वह उसका नाश होने पर अवश्य
नष्ट हो जाता है (अर्थात् आधेयका घात होने पर आधारका घात हो जाता ही है), जैसे प्रकाशका
घात होने पर दीपकका घात हो जाता है । और जो जिसमें नहीं होता वह उसका घात होने पर
नष्ट नहीं होता, जैसे घड़ेका नाश होने पर १घट-प्रदीपका नाश नहीं होता; तथा जिसमें जो नहीं
होता वह उसका घात होने पर नष्ट नहीं होता, जैसे घट-प्रदीपका घात होने पर घटका नाश नहीं
होता । (इसप्रकारसे न्याय कहा है ।) अब, आत्माके धर्म — दर्शन, ज्ञान और चारित्र —
पुद्गलद्रव्यका घात होने पर भी नष्ट नहीं होते और दर्शन-ज्ञान-चारित्रका घात होने पर भी
१घट-प्रदीप = घड़ेमें रखा हुआ दीपक । (परमार्थतः दीपक घड़ेमें नहीं है, घड़ेमें तो घड़ेके ही गुण हैं) ।