Samaysar (Hindi). Kalash: 225.

< Previous Page   Next Page >


Page 538 of 642
PDF/HTML Page 571 of 675

 

५३८
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-

ज्ञानादन्यत्रेदमहमिति चेतनम् अज्ञानचेतना सा द्विधाकर्मचेतना कर्मफलचेतना च तत्र ज्ञानादन्यत्रेदमहं करोमीति चेतनं कर्मचेतना; ज्ञानादन्यत्रेदं वेदयेऽहमिति चेतनं कर्मफलचेतना सा तु समस्तापि संसारबीजं; संसारबीजस्याष्टविधकर्मणो बीजत्वात् ततो मोक्षार्थिना पुरुषेणाज्ञानचेतनाप्रलयाय सकलकर्मसंन्यासभावनां सकलकर्मफलसंन्यासभावनां च नाटयित्वा स्वभावभूता भगवती ज्ञानचेतनैवैका नित्यमेव नाटयितव्या

तत्र तावत्सकलकर्मसंन्यासभावनां नाटयति
(आर्या)
कृतकारितानुमननैस्त्रिकालविषयं मनोवचनकायैः
परिहृत्य कर्म सर्वं परमं नैष्कर्म्यमवलम्बे ।।२२५।।

टीका :ज्ञानसे अन्यमें (-ज्ञानके सिवा अन्य भावोंमें) ऐसा चेतना (-अनुभव करना) कि ‘यह मैं हूँ,’ सो अज्ञानचेतना है वह दो प्रकारकी हैकर्मचेतना और कर्मफलचेतना उसमें, ज्ञानसे अन्यमें (अर्थात् ज्ञानके सिवा अन्य भावोंमें) ऐसा चेतना कि ‘इसको मैं करता हूँ’, वह कर्मचेतना है; और ज्ञानसे अन्यमें ऐसा चेतना कि ‘इसे मैं भोगता हूँ’, वह कर्मफलचेतना है (इसप्रकार अज्ञानचेतना दो प्रकारसे है) वह समस्त अज्ञानचेतना संसारका बीज है; क्योंकि संसारके बीज जो आठ प्रकारके (ज्ञानावरणादि) कर्म, उनका बीज वह अज्ञानचेतना है (अर्थात् उससे कर्मोका बन्ध होता है) इसलिये मोक्षार्थी पुरुषको अज्ञानचेतनाका प्रलय करनेके लिये सकल कर्मोके संन्यास (त्याग)की भावनाको तथा सकल कर्मफलके संन्यासकी भावनाको नचाकर, स्वभावभूत ऐसी भगवती ज्ञानचेतनाको ही एकको सदैव नचाना चाहिए।।३८७ से ३८९।।

इसमें पहले, सकल कर्मोंके संन्यासकी भावनाको नचाते हैं :
(वहाँ प्रथम, काव्य कहते हैं :)

श्लोकार्थ :[त्रिकालविषयं ] त्रिकालके (अर्थात् अतीत, वर्तमान और अनागत काल संबंधी) [सर्व कर्म ] समस्त कर्मको [कृत-कारित-अनुमननैः ] कृत-कारित-अनुमोदनासे और[मनः-वचन-कायैः ] मन-वचन-कायसे [परिहृत्य ] त्याग करके [परमं नैष्कर्म्यम् अवलम्बे ] मैं परम नैष्कर्म्यका (उत्कृष्ट निष्कर्म अवस्थाका) अवलम्बन करता हूँ (इसप्रकार, समस्त कर्मोंका त्याग करनेवाला ज्ञानी प्रतिज्ञा करता है)।।२२५।।

(अब, टीकामें प्रथम, प्रतिक्रमण-कल्प अर्थात् प्रतिक्रमणकी विधि कहते हैं :)
(प्रतिक्रमण करनेवाला कहता है कि :)