कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
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(आर्या)
मोहाद्यदहमकार्षं समस्तमपि कर्म तत्प्रतिक्रम्य ।
आत्मनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना वर्ते ।।२२६।।
पर मन, वचन, काय – ये तीन लगाये हैं। इसप्रकार बने हुए इस एक भंगको१ ‘३३’ की
समस्यासे – संज्ञासे – पहिचाना जा सकता है। २ से ४ तकके भंगोंमें कृत, कारित, अनुमोदनाके तीनों
लेकर उन पर मन, वचन, कायमेंसे दो दो लगाए है। इसप्रकार बने हुए इन तीनों भंगोंको२ ‘३२’
की संज्ञासे पहिचाना जा सकता है। ५ से ७ तकके भंगोंमें कृत, कारित, अनुमोदनाके तीनों लेकर
उन पर मन, वचन, कायमेंसे एक एक लगाया है। इन तीनों भंगोंको ‘३१’ की संज्ञासे पहिचाना
जा सकता है। ८ से १० तकके भंगोंमें कृत, कारित, अनुमोदनामेंसे दो-दो लेकर उन पर मन,
वचन, काय तीनों लगाए हैं। इन तीनों भंगोंको ‘२३’ की संज्ञावाले भंगोंके रूपमें पहिचाना जा
सकता है। ११ से १९ तकके भंगोंमें कृत, कारित, अनुमोदनामेंसे दो-दो लेकर उन पर मन, वचन,
कायमेंसे दो दो लगाये हैं। इन नौ भंगोंको ‘२२’ की संज्ञावाले पहिचाना जा सकता है। २० से
२८ तकके भंगोंमें कृत, कारित, अनुमोदनामेंसे दो-दो लेकर उन पर मन, वचन, कायमेंसे एक
एक लगाया है। इन नौ भंगोंको ‘२१’ की संज्ञावाले भंगोंके रूपमें पहिचाना जा सकता है। २९
से ३१ तकके भंगोंमें कृत, कारित, अनुमोदनामेंसे एक एक लेकर उन पर मन, वचन, काय तीनों
लगाये हैं। इन तींनों भंगोंको ‘१३’ की संज्ञासे पहिचाना जा सकता है। ३२ से ४० तकके भंगोंमें
कृत, कारित, अनुमोदनामेंसे एक-एक लेकर उन पर मन, वचन, कायमेंसे दो दो लगाये हैं। इन
नौ भंगोंको ‘१२’ की संज्ञासे पहिचाना जा सकता है। ४१ से ४९ तकके भंगोंके कृत, कारित,
अनुमोदनामेंसे एक एक लेकर उन पर मन, वचन, कायमेंसे एक एक लगाया है। इन नौ भंगोंको
‘११’ की संज्ञासे पहिचाना जा सकता है। इसप्रकार सब मिलाकर ४९ भंग हुये।)
अब, इस कथनका कलशरूप काव्य कहते हैं : —
श्लोकार्थ : — [यद् अहम् मोहात् अकार्षम् ] मैंने जो मोहसे अथवा अज्ञानसे
(भूतकालमें) कर्म किये हैं, [तत् समस्तम् अपि कर्म प्रतिक्रम्य ] उन समस्त कर्मोंका प्रतिक्रमण
१कृत, कारित, अनुमोदना – यह तीनों लिये गये हैं सो उन्हें बतानेके लिये पहले ‘३’ का अंक रखना
चाहिए; और फि र मन, वचन, काय – यह तीन लिये हैं सो इन्हें बतानेके लिये उसीके पास दूसरा ‘३’
का अंक रखना चाहिए। इसप्रकार ‘३३’ की संज्ञा हुई।
२कृत, कारित, अनुमोदना तीनों लिये हैं, यह बतानेके लिये पहले ‘३’ का अंक रखना चाहिए; और
फि र मन, वचन, कायमेंसे दो लिये हैं यह बतानेके लिये ‘३’ के पास ‘२’ का अंक रखना चाहिए।
इसप्रकार ‘३२’ की संज्ञा हुई।