कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
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सत्थं णाणं ण हवदि जम्हा सत्थं ण याणदे किंचि ।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सत्थं जिणा बेंति ।।३९०।।
सद्दो णाणं ण हवदि जम्हा सद्दो ण याणदे किंचि ।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सद्दं जिणा बेंति ।।३९१।।
रूवं णाणं ण हवदि जम्हा रूवं ण याणदे किंचि ।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं रूवं जिणा बेंति ।।३९२।।
वण्णो णाणं ण हवदि जम्हा वण्णो ण याणदे किंचि ।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं वण्णं जिणा बेंति ।।३९३।।
गंधो णाणं ण हवदि जम्हा गंधो ण याणदे किंचि ।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं गंधं जिणा बेंति ।।३९४।।
ण रसो दु हवदि णाणं जम्हा दु रसो ण याणदे किंचि ।
तम्हा अण्णं णाणं रसं च अण्णं जिणा बेंति ।।३९५।।
रे ! शास्त्र है नहिं ज्ञान, क्योंकि शास्त्र कुछ जाने नहीं।
इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु शास्त्र अन्य — प्रभू कहे ।।३९०।।
रे ! शब्द है नहिं ज्ञान, क्योंकि शब्द कुछ जाने नहीं।
इस हेतुसे है ज्ञान अन्य रु शब्द अन्य — प्रभू कहे ।।३९१।।
रे ! रूप है नहिं ज्ञान, क्योंकि रूप कुछ जाने नहीं।
इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु रूप अन्य — प्रभू कहे ।।३९२।।
रे ! वर्ण है नहिं ज्ञान, क्योंकि वर्ण कुछ जाने नहीं।
इस हेतुसे है ज्ञान अन्य रु वर्ण अन्य — प्रभू कहे ।।३९३।।
रे ! गंध है नहिं ज्ञान, क्योंकि गंध कुछ जाने नहीं।
इस हेतुसे है ज्ञान अन्य रु गंध अन्य — प्रभू कहे ।।३९४।।
रे ! रस नहीं है ज्ञान, क्योंकि रस जु कुछ जाने नहीं।
इस हेतुसे है ज्ञान अन्य रु अन्य रस — जिनवर कहे ।।३९५।।