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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
फासो ण हवदि णाणं जम्हा फासो ण याणदे किंचि ।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं फासं जिणा बेंति ।।३९६।।
कम्मं णाणं ण हवदि जम्हा कम्मं ण याणदे किंचि ।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं कम्मं जिणा बेंति ।।३९७।।
धम्मो णाणं ण हवदि जम्हा धम्मो ण याणदे किंचि ।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं धम्मं जिणा बेंति ।।३९८।।
णाणमधम्मो ण हवदि जम्हाधम्मो ण याणदे किंचि ।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णमधम्मं जिणा बेंति ।।३९९।।
कालो णाणं ण हवदि जम्हा कालो ण याणदे किंचि ।
तम्हा अण्णं णाणं अण्णं कालं जिणा बेंति ।।४००।।
आयासं पि ण णाणं जम्हायासं ण याणदे किंचि ।
तम्हायासं अण्णं अण्णं णाणं जिणा बेंति ।।४०१।।
रे ! स्पर्श है नहिं ज्ञान, क्योंकि स्पर्श कुछ जाने नहीं।
इस हेतुसे है ज्ञान अन्य रु स्पर्श अन्य — प्रभू कहे ।।३९६।।
रे ! कर्म है नहिं ज्ञान, क्योंकि कर्म कुछ जाने नहीं।
इस हेतुसे है ज्ञान अन्य रु कर्म अन्य — जिनवर कहे ।।३९७।।
रे ! धर्म नहिं है ज्ञान, क्योंकि धर्म कुछ जाने नहीं।
इस हेतुसे है ज्ञान अन्य रु धर्म अन्य — जिनवर कहे ।।३९८।।
नहिं है अधर्म जु ज्ञान, क्योंकि अधर्म कुछ जाने नहीं।
इस हेतुसे है ज्ञान अन्य अधर्म अन्य — जिनवर कहे ।।३९९।।
रे ! काल है नहिं ज्ञान, क्योंकि काल कुछ जाने नहीं।
इस हेतुसे है ज्ञान अन्य रु काल अन्य — प्रभू कहे ।।४००।।
आकाश है नहिं ज्ञान, क्योंकि आकाश कुछ जाने नहीं।
इस हेतुसे आकाश अन्य रु ज्ञान अन्य — प्रभू कहे ।।४०१।।