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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
ज्ञानं सम्यग्द्रष्टिं तु संयमं सूत्रमङ्गपूर्वगतम् ।
धर्माधर्मं च तथा प्रव्रज्यामभ्युपयान्ति बुधाः ।।४०४।।
न श्रुतं ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानश्रुतयोर्व्यतिरेकः । न शब्दो ज्ञानम-
चेतनत्वात्, ततो ज्ञानशब्दयोर्व्यतिरेकः । न रूपं ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानरूपयोर्व्यतिरेकः ।
न वर्णो ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानवर्णयोर्व्यतिरेकः । न गन्धो ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो
ज्ञानगन्धयोर्व्यतिरेकः । न रसो ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानरसयोर्व्यतिरेकः । न स्पर्शो
ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानस्पर्शयोर्व्यतिरेकः । न कर्म ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञान-
कर्मणोर्व्यतिरेकः । न धर्मो ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानधर्मयोर्व्यतिरेकः । नाधर्मो
ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानाधर्मयोर्व्यतिरेकः । न कालो ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो
ज्ञानकालयोर्व्यतिरेकः । नाकाशं ज्ञानमचेतनत्वात्, ततो ज्ञानाकाशयोर्व्यतिरेकः । नाध्यवसानं
[ज्ञातव्यम् ] ऐसा जानना चाहिए।
[बुधाः ] बुध पुरुष (अर्थात् ज्ञानी जन) [ज्ञानं ] ज्ञानको ही [सम्यग्दृष्टिं तु ] सम्यग्दृष्टि,
[संयमं ] (ज्ञानको ही) संयम, [अंगपूर्वगतम् सूत्रम् ] अंगपूर्वगत सूत्र, [धर्माधर्मं च ] धर्म-अधर्म
(पुण्य-पाप) [तथा प्रव्रज्याम् ] तथा दीक्षा [अभ्युपयान्ति ] मानते हैं।
टीका : — श्रुत (अर्थात् वचनात्मक द्रव्यश्रुत) ज्ञान नहीं है, क्योंकि श्रुत अचेतन है;
इसलिये ज्ञानके और श्रुतके व्यतिरेक (अर्थात् भिन्नता) है। शब्द ज्ञान नहीं है, क्योंकि शब्द
(पुद्गलद्रव्यकी पर्याय है,) अचेतन है; इसलिये ज्ञानके और शब्दके व्यतिरेक (अर्थात् भेद) है।
रूप ज्ञान नहीं है, क्योंकि रूप (पुद्गलद्रव्यका गुण है,) अचेतन है; इसलिये ज्ञानके और रूपके
व्यतिरेक है (अर्थात् दोनों भिन्न हैं)। वर्ण ज्ञान नहीं है, क्योंकि वर्ण (पुद्गलद्रव्यका गुण है,)
अचेतन है; इसलिये ज्ञानके और वर्णके व्यतिरेक है (अर्थात् ज्ञान अन्य है, वर्ण अन्य है)। गंध
ज्ञान नहीं है, क्योंकि गंध (पुद्गलद्रव्यका गुण है,) अचेतन है; इसलिये ज्ञानके और गंधके
व्यतिरेक ( – भेद, भिन्नता) है। रस ज्ञान नहीं है, क्योंकि रस (पुद्गलद्रव्यका गुण है,) अचेतन
है; इसलिये ज्ञानके और रसके व्यतिरेक है। स्पर्श ज्ञान नहीं है, क्योंकि स्पर्श (पुद्गलद्रव्यका
गुण है,) अचेतन है; इसलिये ज्ञानके और स्पर्शके व्यतिरेक है। कर्म ज्ञान नहीं है, क्योंकि कर्म
अचेतन है; इसलिये ज्ञानके और कर्मके व्यतिरेक है। धर्म ( – धर्मद्रव्य) ज्ञान नहीं है, क्योंकि धर्म
अचेतन है; इसलिये ज्ञानके और धर्मके व्यतिरेक है। अधर्म ( – अधर्मद्रव्य) ज्ञान नहीं है, क्योंकि
अधर्म अचेतन है; इसलिये ज्ञानके और अधर्मके व्यतिरेक है।
काल ( – कालद्रव्य) ज्ञान नहीं है,