कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
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पासंडीलिंगाणि व गिहिलिंगाणि व बहुप्पयाराणि ।
घेत्तुं वदंति मूढा लिंगमिणं मोक्खमग्गो त्ति ।।४०८।।
ण दु होदि मोक्खमग्गो लिंगं जं देहणिम्ममा अरिहा ।
लिंगं मुइत्तु दंसणणाणचरित्ताणि सेवंति ।।४०९।।
पाषण्डिलिङ्गानि वा गृहिलिङ्गानि वा बहुप्रकाराणि ।
गृहीत्वा वदन्ति मूढा लिङ्गमिदं मोक्षमार्ग इति ।।४०८।।
न तु भवति मोक्षमार्गो लिङ्ग यद्देहनिर्ममा अर्हन्तः ।
लिङ्ग मुक्त्वा दर्शनज्ञानचारित्राणि सेवन्ते ।।४०९।।
केचिद्द्रव्यलिंगमज्ञानेन मोक्षमार्गं मन्यमानाः सन्तो मोहेन द्रव्यलिंगमेवोपाददते ।
तदनुपपन्नम्; सर्वेषामेव भगवतामर्हद्देवानां, शुद्धज्ञानमयत्वे सति द्रव्यलिंगाश्रयभूत-
अब, इसी अर्थको गाथाओं द्वारा कहते हैं : —
मुनिलिंगको अथवा गृहस्थीलिंगको बहुभांतिके।
ग्रहकर कहत है मूढ़जन, ‘यह लिंग मुक्तीमार्ग है’।।४०८।।
वह लिंग मुक्तीमार्ग नहिं, अर्हन्त निर्मम देहमें।
बस लिंग तजकर ज्ञान अरु चारित्र, दर्शन सेवते।।४०९।।
गाथार्थ : — [बहुप्रकाराणि ] बहुत प्रकारके [पाषण्डिलिङ्गानि वा ] मुनिलिंगोंको
[गृहीलिङ्गानि वा ] अथवा गृहीलिंगोंको [गृहीत्वा ] ग्रहण करके [मूढाः ] मूढ (अज्ञानी) जन
[वदन्ति ] यह कहते हैं कि [इदं लिङ्गम् ] यह (बाह्य) लिंग [मोक्षमार्गः इति ] मोक्षमार्ग है।
[तु ] परन्तु [लिङ्गं ] लिंग [मोक्षमार्गः न भवति ] मोक्षमार्ग नहीं है; [यत् ] क्योंकि
[अर्हन्तः ] अर्हन्तदेव [देहनिर्ममाः ] देहके प्रति निर्मम वर्तते हुए [लिङ्गं मुक्त्वा ] लिंगको छोड़कर
[दर्शनज्ञानचारित्राणि सेवन्ते ] दर्शन-ज्ञान-चारित्रका ही सेवन करते हैं।
टीका : — कितने ही लोग अज्ञानसे द्रव्यलिंगको मोक्षमार्ग मानते हुए मोहसे द्रव्यलिंगको
ही ग्रहण करते हैं। यह ( – द्रव्यलिंगको मोक्षमार्ग मानकर ग्रहण करना सो) अनुपपन्न अर्थात्
अयुक्त है; क्योंकि सभी भगवान अर्हन्तदेवोंके, शुद्धज्ञानमयता होनेसे द्रव्यलिंगके आश्रयभूत शरीरके