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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
शरीरममकारत्यागात्, तदाश्रितद्रव्यलिंगत्यागेन दर्शनज्ञानचारित्राणां मोक्षमार्गत्वेनोपासनस्य
दर्शनात् ।
अथैतदेव साधयति —
ण वि एस मोक्खमग्गो पासंडीगिहिमयाणि लिंगाणि ।
दंसणणाणचरित्ताणि मोक्खमग्गं जिणा बेंति ।।४१०।।
नाप्येष मोक्षमार्गः पाषण्डिगृहिमयानि लिङ्गानि ।
दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गं जिना ब्रुवन्ति ।।४१०।।
न खलु द्रव्यलिंग मोक्षमार्गः, शरीराश्रितत्वे सति परद्रव्यत्वात् । दर्शनज्ञानचारित्राण्येव
मोक्षमार्गः, आत्माश्रितत्वे सति स्वद्रव्यत्वात् ।
ममत्वका त्याग होता है इसलिये, शरीराश्रित द्रव्यलिंगके त्यागसे दर्शनज्ञानचारित्रकी मोक्षमार्गरूपसे
उपासना देखी जाती है (अर्थात् वे शरीराश्रित द्रव्यलिंगका त्याग करके दर्शनज्ञानचारित्रको
मोक्षमार्गके रूपमें सेवन करते हुए देखे जाते हैं)।
भावार्थ : — यदि देहमय द्रव्यलिंग मोक्षका कारण होता तो अर्हन्तदेव आदि देहका ममत्व
छोड़कर दर्शन-ज्ञान-चारित्रका सेवन क्यों करते ? द्रव्यलिंगसे ही मोक्ष प्राप्त कर लेते ! इससे यह
निश्चय हुआ कि — देहमय लिंग मोक्षमार्ग नहीं है, परमार्थतः दर्शनज्ञानचारित्ररूप आत्मा ही मोक्षका
मार्ग है।।४०८-४०९।।
अब, यही सिद्ध करते हैं (अर्थात् द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग नहीं है, दर्शन-ज्ञान-चारित्र ही
मोक्षमार्ग है — यह सिद्ध करते हैं) : —
मुनिलिंग अरु गृहीलिंग — ये नहिं लिंग मुक्तीमार्ग है।
चारित्र-दर्शन-ज्ञानको बस मोक्षमार्ग प्रभू कहे।।४१०।।
गाथार्थ : — [पाषण्डिगृहिमयानि लिङ्गानि ] मुनियों और गृहस्थके लिंग ( – चिह्न)
[एषः ] यह [मोक्षमार्गः न अपि ] मोक्षमार्ग नहीं है; [दर्शनज्ञानचारित्राणि ] दर्शन – ज्ञान – चारित्रको
[जिनाः ] जिनदेव [मोक्षमार्गं ब्रुवन्ति ] मोक्षमार्ग कहते हैं।
टीका : — द्रव्यलिंग वास्तवमें मोक्षमार्ग नहीं है, क्योंकि वह (द्रव्यलिंग) शरीराश्रित
होनेसे परद्रव्य है। दर्शन-ज्ञान-चारित्र ही मोक्षमार्ग है, क्योंकि वे आत्माश्रित होनेसे स्वद्रव्य हैं।