कहानजैनशास्त्रमाला ]
सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
५८१
यत एवम् —
तम्हा जहित्तु लिंगे सागारणगारएहिं वा गहिदे ।
दंसणणाणचरित्ते अप्पाणं जुंज मोक्खपहे ।।४११।।
तस्मात् जहित्वा लिङ्गानि सागारैरनगारकैर्वा गृहीतानि ।
दर्शनज्ञानचारित्रे आत्मानं युंक्ष्व मोक्षपथे ।।४११।।
यतो द्रव्यलिंग न मोक्षमार्गः, ततः समस्तमपि द्रव्यलिंगं त्यक्त्वा दर्शनज्ञानचारित्रेष्वेव,
मोक्षमार्गत्वात्, आत्मा योक्त व्य इति सूत्रानुमतिः ।
भावार्थ : — जो मोक्ष है सो सर्व कर्मोके अभावरूप आत्मपरिणाम ( – आत्माके परिणाम)
हैं, इसलिये उसका कारण भी आत्मपरिणाम ही होना चाहिए। दर्शन-ज्ञान-चारित्र आत्माके परिणाम
हैं; इसलिये निश्चयसे वही मोक्षका मार्ग है। जो लिंग है सो देहमय है; और जो देह है वह
पुद्गलद्रव्यमय है; इसलिये आत्माके लिये देह मोक्षमार्ग नहीं है। परमार्थसे अन्य द्रव्यको अन्य
द्रव्य कुछ नहीं करता ऐसा नियम है।।४१०।।
जब कि ऐसा है (अर्थात् यदि द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग नहीं है और दर्शनज्ञानचारित्र ही मोक्षमार्ग
है) तो इसप्रकार (निम्नप्रकार) से करना चाहिए — यह उपदेश हैः —
यों छोड़कर सागार या अनगार-धारित लिंगको।
चारित्र-दर्शन-ज्ञानमें तू जोड रे ! निज आत्मको।।४११।।
गाथार्थ : — [तस्मात् ] इसलिये [सागारैः ] सागारों द्वारा ( – गृहस्थों द्वारा) [अनगारकैः
वा ] अथवा अणगारोंके द्वारा ( – मुनियोंके द्वारा) [गृहीतानि ] ग्रहण किये गये [लिङ्गानि ]
लिंगोंको [जहित्वा ] छोड़कर, [दर्शनज्ञानचारित्रे ] दर्शनज्ञानचारित्रमें — [मोक्षपथे ] जो कि
मोक्षमार्ग है उसमें — [आत्मानं युंक्ष्व ] तू आत्माको लगा।
टीका : — क्योंकि द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग नहीं है, इसलिए समस्त द्रव्यलिंगका त्याग करके
दर्शनज्ञानचारित्रमें ही, वह (दर्शनज्ञानचारित्र) मोक्षमार्ग होनेसे, आत्माको लगाना योग्य है — ऐसी
सूत्रकी अनुमति है।
भावार्थ : — यहाँ द्रव्यलिंगको छोड़कर आत्माको दर्शनज्ञानचारित्रमें लगानेका वचन है वह
सामान्य परमार्थ वचन है। कोई यह समझेगा कि यह मुनि-श्रावकके व्रतोंके छुड़ानेका उपदेश
है। परन्तु ऐसा नहीं है। जो मात्र द्रव्यलिंगको ही मोक्षमार्ग जानकर वेश धारण करते हैं, उन्हें