Samaysar (Hindi). Kalash: 248 1.

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कहानजैनशास्त्रमाला ]
परिशिष्ट
५९७
सत्त्वं द्योतयन्ननेकान्त एव नाशयितुं न ददाति १२ यदाऽनित्यज्ञानविशेषैः
खण्डितनित्यज्ञानसामान्यो नाशमुपैति, तदा ज्ञानसामान्यरूपेण नित्यत्वं द्योतयन्ननेकान्त
एव तमुज्जीवयति १३
यदा तु नित्यज्ञानसामान्योपादानायानित्यज्ञानविशेषत्यागेनात्मानं
नाशयति, तदा ज्ञानविशेषरूपेणानित्यत्वं द्योतयन्ननेकान्त एव नाशयितुं न ददाति १४
भवन्ति चात्र श्लोकाः
(शार्दूलविक्रीडित)
बाह्यार्थैः परिपीतमुज्झितनिजप्रव्यक्ति रिक्तीभवद्
विश्रान्तं पररूप एव परितो ज्ञानं पशोः सीदति
यत्तत्तत्तदिह स्वरूपत इति स्याद्वादिनस्तत्पुन-
र्दूरोन्मग्नघनस्वभावभरतः पूर्णं समुन्मज्जति
।।२४८।।
मानकरअंगीकार करके अपना नाश करता है, तब (उस ज्ञानमात्र भावका) परभावसे असत्पना
प्रकाशित करता हुआ, अनेकान्त ही उसे अपना नाश नहीं करने देता।१२।
जब यह ज्ञानमात्र भाव अनित्यज्ञानविशेषोंके द्वारा अपना नित्य ज्ञानसामान्य खण्डित हुआ
मानकर नाशको प्राप्त होता है, तब (उस ज्ञानमात्र भावका) ज्ञानसामान्यरूपसे नित्यत्व प्रकाशित
करता हुआ, अनेकान्त ही उसे जिलाता है
नष्ट नहीं होने देता।१३।
और जब यह ज्ञानमात्र भाव नित्य ज्ञानसामान्यका ग्रहण करनेके लिये अनित्य ज्ञानविशेषोंके
त्यागके द्वारा अपना नाश करता है (अर्थात् ज्ञानके विशेषोंका त्याग करके अपनेको नष्ट करता
है), तब (उस ज्ञानमात्र भावका) ज्ञानविशेषरूपसे अनित्यत्व प्रकाशित करता हुआ, अनेकान्त ही
उसे अपना नाश नहीं करने देता
।१४।
(यहाँ तत्-अतत्के २ भंग, एक-अनेकके २ भंग, सत्-असत्के द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावसे
८ भंग, और नित्य-अनिन्यके २ भंगइसप्रकार सब मिलाकर १४ भंग हुए इन चौदह भंगोंमें
यह बताया है किएकान्तसे ज्ञानमात्र आत्माका अभाव होता है और अनेकान्तसे आत्मा जीवित
रहता है; अर्थात् एकान्तसे आत्मा जिस स्वरूप है उस स्वरूप नहीं समझा जाता, स्वरूपमें
परिणमित नहीं होता, और अनेकान्तसे वह वास्तविक स्वरूपसे समझा जाता है, स्वरूपमें परिणमित
होता है
)
यहाँ निम्न प्रकारसे (चौदह भंगोंके कलशरूप) चौदह काव्य भी कहे जा रहे हैं
(उनमेंसे पहले, प्रथम भंगका कलशरूप काव्य इसप्रकार है :)
श्लोकार्थ :[बाह्य-अर्थैः परिपीतम् ] बाह्य पदार्थोंके द्वारा सम्पूर्णतया पिया गया,