Samaysar (Hindi). Gatha: 13.

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भूदत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्णपावं च
आसवसंवरणिज्जरबंधो मोक्खो य सम्मत्तं ।।१३।।
भूतार्थेनाभिगता जीवाजीवौ च पुण्यपापं च
आस्रवसंवरनिर्जरा बन्धो मोक्षश्च सम्यक्त्वम।।१३।।
अमूनि हि जीवादीनि नवतत्त्वानि भूतार्थेनाभिगतानि सम्यग्दर्शनं सम्पद्यन्त एव, अमीषु
तीर्थप्रवृत्तिनिमित्तमभूतार्थनयेन व्यपदिश्यमानेषु जीवाजीवपुण्यपापास्रवसंवरनिर्जराबन्धमोक्षलक्षणेषु
नवतत्त्वेष्वेकत्वद्योतिना भूतार्थनयेनैकत्वमुपानीय शुद्धनयत्वेन व्यवस्थापितस्यात्मनोऽनुभूतेरात्म-
ख्यातिलक्षणायाः सम्पद्यमानत्वात
तत्र विकार्यविकारकोभयं पुण्यं तथा पापम्, आस्राव्यास्रावको-
भयमास्रवः, संवार्यसंवारकोभयं संवरः, निर्जर्यनिर्जरकोभयं निर्जरा, बन्ध्यबन्धकोभयंः बन्धः,
कहानजैनशास्त्रमाला ]
पूर्वरंग
३१
इसप्रकार ही शुद्धनयसे जानना सो सम्यक्त्व है, यह सूत्रकार इस गाथामें कहते हैं :
भूतार्थसे जाने अजीव जीव, पुण्य पाप रु निर्जरा
आस्रव संवर बन्ध मुक्ति, ये हि समकित जानना ।।१३।।
गाथार्थ :[भूतार्थेन अभिगताः ] भूतार्थ नयसे ज्ञात [जीवाजीवौ ] जीव, अजीव [च ]
और [पुण्यपापं ] पुण्य, पाप [च ] तथा [आस्रवसंवरनिर्जराः ] आस्रव, संवर, निर्जरा, [बन्धः ]
बन्ध [च ] और [मोक्षः ] मोक्ष [सम्यक्त्वम् ]
यह नव तत्त्व सम्यक्त्व हैं
टीका :ये जीवादि नवतत्त्व भूतार्थ नयसे जाने हुवे सम्यग्दर्शन ही हैं (यह
नियम कहा); क्योंकि तीर्थकी (व्यवहार धर्मकी) प्रवृत्तिके लिये अभूतार्थ (व्यवहार)नयसे
कहे जाते हैं ऐसे ये नवतत्त्व
जिनके लक्षण जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर,
निर्जरा, बन्ध और मोक्ष हैंउनमें एकत्व प्रगट करनेवाले भूतार्थनयसे एकत्व प्राप्त करके,
शुद्धनयरूपसे स्थापित आत्माकी अनुभूतिजिसका लक्षण आत्मख्याति हैउसकी प्राप्ति
होती है (शुद्धनयसे नवतत्त्वोंको जाननेसे आत्माकी अनुभूति होती है, इस हेतुसे यह नियम
कहा है ) वहाँ, विकारी होने योग्य और विकार करनेवालादोनों पुण्य हैं तथा दोनों पाप
हैं, आस्रव होने योग्य और आस्रव करनेवालादोनों आस्रव हैं, संवररूप होने योग्य
(संवार्य) और संवर करनेवाला (संवारक)दोनों संवर हैं, निर्जरा होनेके योग्य और निर्जरा
करनेवालादोनों निर्जरा हैं, बन्धनेके योग्य और बन्धन करनेवालादोनों बन्ध हैं और मोक्ष
होने योग्य तथा मोक्ष करनेवालादोनों मोक्ष हैं; क्योंकि एकके ही अपने आप पुण्य, पाप,