Samaysar (Hindi).

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मोच्यमोचकोभयं मोक्षः, स्वयमेकस्य पुण्यपापास्रवसंवरनिर्जराबन्धमोक्षानुपपत्तेः तदुभयं च
जीवाजीवाविति बहिर्दृष्टया नवतत्त्वान्यमूनि जीवपुद्गलयोरनादिबन्धपर्यायमुपेत्यैकत्वेनानुभूय-
मानतायां भूतार्थानि, अथ चैकजीवद्रव्यस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थानि ततोऽमीषु
नवतत्त्वेषु भूतार्थनयेनैको जीव एव प्रद्योतते तथान्तर्दृष्टया ज्ञायको भावो जीवः, जीवस्य
विकारहेतुरजीवः केवलजीवविकाराश्च पुण्यपापास्रवसंवरनिर्जराबन्धमोक्षलक्षणाः, केवलाजीवविकार-
हेतवः पुण्यपापास्रवसंवरनिर्जराबन्धमोक्षा इति नवतत्त्वान्यमून्यपि जीवद्रव्यस्वभावमपोह्य
स्वपरप्रत्ययैकद्रव्यपर्यायत्वेनानुभूयमानतायां भूतार्थानि, अथ च सकलकालमेवास्खलन्तमेकं
जीवद्रव्यस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थानि
ततोऽमीष्वपि नवतत्त्वेषु भूतार्थनयेनैको जीव एव
प्रद्योतते एवमसावेकत्वेन द्योतमानः शुद्धनयत्वेनानुभूयत एव या त्वनुभूतिः सात्मख्याति-
रेवात्मख्यातिस्तु सम्यग्दर्शनमेव इति समस्तमेव निरवद्यम
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्षकी उपपत्ति (सिद्धि) नहीं बनती वे दोनों जीव और
अजीव हैं (अर्थात् उन दोमेंसे एक जीव है और दूसरा अजीव)
बाह्य (स्थूल) दृष्टिसे देखा जाये तो :जीव-पुद्गलकी अनादि बन्धपर्यायके समीप
जाकर एकरूपसे अनुभव करनेपर यह नवतत्त्व भूतार्थ हैं, सत्यार्थ हैं और एक जीवद्रव्यके
स्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर वे अभूतार्थ हैं, असत्यार्थ हैं; (वे जीवके एकाकार
स्वरूपमें नहीं हैं;) इसलिये इन नव तत्त्वोंमें भूतार्थ नयसे एक जीव ही प्रकाशमान है
इसीप्रकार अन्तर्दृष्टिसे देखा जाये तो :ज्ञायक भाव जीव है और जीवके विकारका हेतु
अजीव है; और पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध तथा मोक्षये जिनके लक्षण हैं
ऐसे केवल जीवके विकार हैं और पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध तथा मोक्ष
ये विकारहेतु केवल अजीव हैं ऐसे यह नवतत्त्व, जीवद्रव्यके स्वभावको छोड़कर, स्वयं
और पर जिनके कारण हैं ऐसी एक द्रव्यकी पर्यायोंके रूपमें अनुभव करने पर भूतार्थ हैं
और सर्व कालमें अस्खलित एक जीवद्रव्यके स्वभावके समीप जाकर अनुभव करने पर वे
अभूतार्थ हैं, असत्यार्थ हैं
इसलिये इन नवों तत्त्वोंमें भूतार्थ नयसे एक जीव ही प्रकाशमान
है इसप्रकार यह, एकत्वरूपसे प्रकाशित होता हुआ, शुद्धनयरूपसे अनुभव किया जाता है
और जो यह अनुभूति है सो आत्मख्याति (आत्माकी पहिचान) ही है, और जो आत्मख्याति
है सो सम्यग्दर्शन ही है
इसप्रकार यह सर्व कथन निर्दोष हैबाधा रहित है
भावार्थ :इन नव तत्त्वोंमें, शुद्धनयसे देखा जाय तो, जीव ही एक चैतन्यचमत्कारमात्र
प्रकाशरूप प्रगट हो रहा है, इसके अतिरिक्त भिन्न भिन्न नव तत्त्व कुछ भी दिखाई नहीं देते जब