अथास्योपायोपेयभावश्चिन्त्यते —
आत्मवस्तुनो हि ज्ञानमात्रत्वेऽप्युपायोपेयभावो विद्यत एव; तस्यैकस्यापि
स्वयं साधकसिद्धरूपोभयपरिणामित्वात् । तत्र यत्साधकं रूपं स उपायः, यत्सिद्धं रूपं
स उपेयः । अतोऽस्यात्मनोऽनादिमिथ्यादर्शनज्ञानचारित्रैः स्वरूपप्रच्यवनात् संसरतः सुनिश्चल-
परिगृहीतव्यवहारसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रपाकप्रकर्षपरम्परया क्रमेण स्वरूपमारोप्यमाणस्यान्त-
र्मग्ननिश्चयसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रविशेषतया साधकरूपेण तथा परमप्रकर्षमकरिकाधिरूढ-
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
(अनेकान्तके साथ सुसंगत, अनेकान्तके साथ मेलवाली) दृष्टिके द्वारा स्वयमेव देखते हुए,
[स्याद्वाद-शुद्धिम् अधिकाम् अधिगम्य ] स्याद्वादकी अत्यन्त शुद्धिको जानकर, [जिन-नीतिम्
अलङ्घयन्तः ] जिननीतिका (जिनेश्वरदेवके मार्गका) उल्लंघन न करते हुए, [सन्तः ज्ञानीभवन्ति ]
सत्पुरुष ज्ञानस्वरूप होते हैं।
भावार्थ : — जो सत्पुरुष अनेकान्तके साथ सुसंगत दृष्टिके द्वारा अनेकान्तमय
वस्तुस्थितिको देखते हैं, वे इसप्रकार स्याद्वादकी शुद्धिको प्राप्त करके — जान करके जिनदेवके
मार्गको – स्याद्वादन्यायको — उल्लंघन न करते हुए, ज्ञानस्वरूप होते हैं।२६५।
इसप्रकार स्याद्वादके सम्बन्धमें कहकर, अब आचार्यदेव उपाय-उपेयभावके सम्बन्धमें
कुछ कहते हैं : —
अब इसके ( – ज्ञानमात्र आत्मवस्तुके) १उपाय-उपेयभाव विचारा जाता है (अर्थात्
आत्मवस्तु ज्ञानमात्र है फि र भी उसमें उपायत्व और उपेयत्व दोनों कैसे घटित होते हैं सो इसका
विचार किया जाता है :
आत्मवस्तुको ज्ञानमात्रता होने पर भी उसे उपाय-उपेयभाव (उपाय-उपेयपना) है ही,
क्योंकि वह एक होने पर भी २स्वयं साधकरूपसे और सिद्धरूपसे — दोनों प्रकारसे परिणमित होता
है। उसमें जो साधक रूप है वह उपाय है और जो सिद्ध रूप है वह उपेय है। इसलिये, अनादि
कालसे मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्र द्वारा (मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र द्वारा) स्वरूपसे
च्युत होनेके कारण संसारमें भ्रमण करते हुए, सुनिश्चलतया ग्रहण किये गये
व्यवहारसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रके पाकके प्रकर्षकी परम्परासे क्रमशः स्वरूपमें आरोहण कराये
जानेवाले इस आत्माको, अन्तर्मग्न जो निश्चयसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररूप भेद हैं उनके साथ तद्रूपताके
१उपेय अर्थात् प्राप्त करने योग्य, और उपाय अर्थात् प्राप्त करने योग्य जिसके द्वारा प्राप्त किया जावे। आत्माका
शुद्ध (-सर्व कर्म रहित) स्वरूप अथवा मोक्ष उपेय है, और मोक्षमार्ग उपाय है।
२आत्मा परिणामी है और साधकत्व तथा सिद्धत्व ये दोनों उसके परिणाम हैं।