कहानजैनशास्त्रमाला ]
परिशिष्ट
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विशेष बुद्धिमानका निमित्त मिलने पर वह यथार्थ हो जाता है। जिनमतके श्रद्धालु हठग्राही
नहीं होते।
अब, अन्तिम मङ्गलके लिए पंचपरमेष्ठीको नमस्कार करके शास्त्रको समाप्त करते हैंः —
(छप्पय छंद)
मङ्गल श्री अरहन्त घातिया कर्म निवारे,
मङ्गल सिद्ध महन्त कर्म आठों परजारे,
आचारज उवज्झाय मुनि मङ्गलमय सारे,
दीक्षा शिक्षा देय भव्यजीवनिकूं तारे;
अठवीस मूलगुण धार जे सर्वसाधु अनगार हैं,
मैं नमूं पंचगुरुचरणकूं मङ्गल हेतु करार हैं।।१।।
(सवैया छंद)
जैपुर नगरमाँही तेरापंथ शैली बड़ी
बड़े बड़े गुनी जहाँ पढ़ै ग्रन्थ सार है,
जयचन्द्र नाम मैं हूँ तिनिमें अभ्यास किछू
कियो बुद्धिसारु धर्मरागतें विचार है;
समयसार ग्रन्थ ताकी देशके वचनरूप
भाषा करी पढ़ो सुनौ करो निरधार है,
आपापर भेद जानि हेय त्यागि उपादेय
गहो शुद्ध आतमकूं, यहै बात सार है ।।२।।
(दोहा)
संवत्सर विक्रम तणूं, अष्टादश शत और;
चौसठि कातिक बदि दशैं, पूरण ग्रन्थ सुठौर।३।
इसप्रकार श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवप्रणीत समयप्राभृत नामक प्राकृतगाथाबद्ध
परमागमकी श्रीमद् अमृतचन्द्राचार्यदेवविरचित आत्मख्याति नामक संस्कृत टीका अनुसार पण्डित
जयचन्द्रजीकृत संक्षेपभावार्थमात्र देशभाषामय वचनिकाके आधारसे श्री हिम्मतलाल जेठालाल शाह
कृत गुजराती अनुवादका हिन्दी रूपान्तर समाप्त हुआ।
समाप्त