स्तेष्वप्ययमेक एव भूतार्थः । प्रमाणं तावत्परोक्षं प्रत्यक्षं च । तत्रोपात्तानुपात्तपरद्वारेण प्रवर्तमानं
परोक्षं, केवलात्मप्रतिनियतत्वेन प्रवर्तमानं प्रत्यक्षं च । तदुभयमपि प्रमातृप्रमाणप्रमेयभेदस्यानुभूय-
मानतायां भूतार्थम्, अथ च व्युदस्तसमस्तभेदैकजीवस्वभावस्यानुभूयमानतायामभूतार्थम् । नयस्तु
द्रव्यार्थिकः पर्यायार्थिकश्च । तत्र द्रव्यपर्यायात्मके वस्तुनि द्रव्यं मुख्यतयानुभावयतीति द्रव्यार्थिकः,
पर्यायं मुख्यतयानुभावयतीति पर्यायार्थिकः । तदुभयमपि द्रव्यपर्याययोः पर्यायेणानुभूयमानतायां
भूतार्थम्, अथ च द्रव्यपर्यायानालीढशुद्धवस्तुमात्रजीवस्वभावस्यानुभूयमानतायामभूतार्थम् । निक्षेपस्तु
नाम स्थापना द्रव्यं भावश्च । तत्रातद्गुणे वस्तुनि संज्ञाकरणं नाम । सोऽयमित्यन्यत्र प्रतिनिधि-
व्यवस्थापनं स्थापना । वर्तमानतत्पर्यायादन्यद् द्रव्यम् । वर्तमानतत्पर्यायो भावः । तच्चतुष्टयं
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समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
अभूतार्थ हैं, उनमें भी आत्मा एक ही भूतार्थ है (क्योंकि ज्ञेय और वचनके भेदोंसे प्रमाणादि अनेक
भेदरूप होते हैं) । उनमेंसे पहले, प्रमाण दों प्रकारके हैं — परोक्ष और प्रत्यक्ष । १उपात्त और
२अनुपात्त पर (पदार्थों) द्वारा प्रवर्ते वह परोक्ष है और केवल आत्मासे ही प्रतिनिश्चितरूपसे प्रवृत्ति
करे सो प्रत्यक्ष है । (प्रमाण ज्ञान है । वह पाँच प्रकारका है — मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और
केवल । उनमेंसे मति और श्रुतज्ञान परोक्ष हैं, अवधि और मनःपर्ययज्ञान विकल-प्रत्यक्ष हैं और
केवलज्ञान सकल-प्रत्यक्ष है । इसलिये यह दो प्रकारके प्रमाण हैं ।) वे दोनों प्रमाता, प्रमाण,
प्रमेयके भेदका अनुभव करनेपर तो भूतार्थ हैं, सत्यार्थ हैं; और जिसमें सर्व भेद गौण हो गये हैं
ऐसे एक जीवके स्वभावका अनुभव करनेपर वे अभूतार्थ हैं, असत्यार्थ हैं ।
नय दो प्रकारके हैं — द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक । वहां द्रव्य-पर्यायस्वरूप वस्तुमें
द्रव्यका मुख्यतासे अनुभव कराये सो द्रव्यार्थिक नय है और पर्यायका मुख्यतासे अनुभव कराये
सो पर्यायार्थिक नय है । यह दोनों नय द्रव्य और पर्यायका पर्यायसे (भेदसे, क्रमसे) अनुभव
करने पर तो भूतार्थ हैं, सत्यार्थ हैं; और द्रव्य तथा पर्याय दोनोंसे अनालिंगित (आलिंगन नहीं
किया हुआ) शुद्धवस्तुमात्र जीवके (चैतन्यमात्र) स्वभावका अनुभव करनेपर वे अभूतार्थ हैं,
असत्यार्थ हैं ।
निक्षेपके चार भेद हैं — नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । वस्तुमें जो गुण न हो उस गुणके
नामसे (व्यवहारके लिए) वस्तुकी संज्ञा करना सो नाम निक्षेप है । ‘यह वह है’ इसप्रकार अन्य
वस्तुमें अन्य वस्तुका प्रतिनिधित्व स्थापित करना ( – प्रतिमारूप स्थापन करना) सो स्थापना निक्षेप
है । वर्तमानसे अन्य अर्थात् अतीत अथवा अनागत पर्यायसे वस्तुको वर्तमानमें कहना सो द्रव्य
१. उपात्त=प्राप्त । (इन्द्रिय, मन इत्यादि उपात्त पदार्थ हैं ।)
२. अनुपात्त=अप्राप्त । (प्रकाश, उपदेश इत्यादि अनुपात्त पर पदार्थ हैं ।)