बिसिनीपत्रस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम्, तथात्मनोऽनादिबद्धस्य बद्धस्पृष्टत्व-
मुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम् । यथा च मृत्तिकायाः करककरीरकर्करीकपालादि-
भूयमानतायामभूतार्थम्, तथात्मनो नारकादिपर्यायेणानुभूयमानतायामन्यत्वं भूतार्थमपि
जैसे कमलिनी-पत्र जलमें डूबा हुआ हो तो उसका जलसे स्पर्शित होनेरूप अवस्थासे अनुभव करनेपर जलसे स्पर्शित होना भूतार्थ है — सत्यार्थ है, तथापि जलसे किंचित्मात्र भी न स्पर्शित होने योग्य कमलिनी-पत्रके स्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर जलसे स्पर्शित होना अभूतार्थ है — असत्यार्थ है; इसीप्रकार अनादि कालसे बँधे हुए आत्माका, पुद्गलकर्मोंसे बंधने — स्पर्शित होनेरूप अवस्थासे अनुभव करनेपर बद्धस्पृष्टता भूतार्थ है — सत्यार्थ है, तथापि पुद्गलसे किंचित्मात्र भी स्पर्शित न होने योग्य आत्मस्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर बद्धस्पृष्टता अभूतार्थ है — असत्यार्थ है ।
तथा जैसे मिट्टीका, कमण्डल, घड़ा, झारी, सकोरा इत्यादि पर्यायोंसे अनुभव करनेपर अन्यत्व भूतार्थ है — सत्यार्थ है, तथापि सर्वतः अस्खलित ( – सर्व पर्यायभेदोंसे किंचित्मात्र भी भेदरूप न होनेवाले ऐसे) एक मिट्टीके स्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर अन्यत्व अभूतार्थ है — असत्यार्थ है; इसीप्रकार आत्माका, नारक आदि पर्यायोंसे अनुभव करनेपर (पर्यायोंके अन्य-अन्यत्वरूप) अन्यत्व भूतार्थ है — सत्यार्थ है, तथापि सर्वतः अस्खलित ( – सर्व पर्यायभेदोंसे किंचित्मात्र भी भेदरूप न होनेवाले ऐसे) एक चैतन्याकार आत्मस्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर अन्यत्व अभूतार्थ है — असत्यार्थ है ।
जैसे समुद्रका, वृद्धिहानिरूप अवस्थासे अनुभव करनेपर अनियतता (अनिश्चितता) भूतार्थ है — सत्यार्थ है, तथापि नित्य-स्थिर समुद्रस्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर अनियतता अभूतार्थ है — असत्यार्थ है; इसीप्रकार आत्माका, वृद्धिहानिरूप पर्यायभेदोंसे अनुभव करनेपर अनियतता भूतार्थ है — सत्यार्थ है, तथापि नित्य-स्थिर (निश्चल) आत्मस्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर अनियतता अभूतार्थ है — असत्यार्थ है ।