पर्यायेणानुभूयमानतायामनियतत्वं भूतार्थमपि नित्यव्यवस्थितं वारिधिस्वभाव-
मुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम्, तथात्मनो वृद्धिहानिपर्यायेणानुभूयमानतायामनियतत्वं भूतार्थमपि
नित्यव्यवस्थितमात्मस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम् । यथा च कांचनस्य
स्निग्धपीतगुरुत्वादिपर्यायेणानुभूयमानतायां विशेषत्वं भूतार्थमपि प्रत्यस्तमितसमस्तविशेषं
कांचनस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम्, तथात्मनो ज्ञानदर्शनादिपर्यायेणानुभूयमानतायां
विशेषत्वं भूतार्थमपि प्रत्यस्तमितसमस्तविशेषमात्मस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम् । यथा
चापां सप्तार्चिःप्रत्ययौष्ण्यसमाहितत्वपर्यायेणानुभूयमानतायां संयुक्तत्वं भूतार्थमप्येकान्ततः
शीतमप्स्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम्, तथात्मनः कर्मप्रत्ययमोहसमाहितत्व-
पर्यायेणानुभूयमानतायां संयुक्तत्वं भूतार्थमप्येकान्ततः स्वयं बोधं जीवस्वभावमुपेत्यानुभूय-
मानतायामभूतार्थम् ।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
पूर्वरंग
३९
विशेषता भूतार्थ है — सत्यार्थ है, तथापि जिसमें सर्व विशेष विलय हो गये हैं ऐसे सुवर्ण
स्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर विशेषता अभूतार्थ है — असत्यार्थ है; इसीप्रकार
आत्माका, ज्ञान, दर्शन आदि गुणरूप भेदोंसे अनुभव करनेपर विशेषता भूतार्थ है — सत्यार्थ है,
तथापि जिसमें सर्व विशेष विलय हो गये हैं ऐसे आत्मस्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर
विशेषता अभूतार्थ है — असत्यार्थ है ।
जैसे जलका, अग्नि जिसका निमित्त है ऐसी उष्णताके साथ संयुक्त तारूप तप्ततारूप
-अवस्थासे अनुभव करनेपर (जलको) उष्णतारूप संयुक्त ता भूतार्थ है — सत्यार्थ है, तथापि
एकान्त शीतलतारूप जलस्वभावके समीप जाकर अनुभव करने पर (उष्णताके साथ)
संयुक्त ता अभूतार्थ है — असत्यार्थ है; इसीप्रकार आत्माका, कर्म जिसका निमित्त है ऐसे
मोहके साथ संयुक्त तारूप अवस्थासे अनुभव करनेपर संयुक्त ता भूतार्थ है — सत्यार्थ है, तथापि
जो स्वयं एकान्त बोधरूप (ज्ञानरूप) है ऐसे जीवस्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर
संयुक्त ता अभूतार्थ है — असत्यार्थ है ।
भावार्थ : — आत्मा पांच प्रकारसे अनेकरूप दिखाई देता है : — (१) अनादि
कालसे कर्मपुद्गलके सम्बन्धसे बन्धा हुआ कर्मपुद्गलके स्पर्शवाला दिखाई देता है, (२)
कर्मके निमित्तसे होनेवाली नर, नारक आदि पर्यायोंमें भिन्न भिन्न स्वरूपसे दिखाई देता है,
(३) शक्ति के अविभाग प्रतिच्छेद (अंश) घटते भी हैं, बढ़ते भी हैं — यह वस्तुस्वभाव है,
इसलिए वह नित्य-नियत एकरूप दिखाई नहीं देता, (४) वह दर्शन, ज्ञान आदि अनेक
गुणोंसे विशेषरूप दिखाई देता है और (५) कर्मके निमित्तसे होनेवाले मोह, राग, द्वेष आदि