Samaysar (Hindi). Kalash: 11.

< Previous Page   Next Page >


Page 41 of 642
PDF/HTML Page 74 of 675

 

background image
(मालिनी)
न हि विदधति बद्धस्पृष्टभावादयोऽमी
स्फु टमुपरि तरन्तोऽप्येत्य यत्र प्रतिष्ठाम
अनुभवतु तमेव द्योतमानं समन्तात
जगदपगतमोहीभूय सम्यक्स्वभावम।।११।।
कहानजैनशास्त्रमाला ]
पूर्वरंग
४१
6
बद्धस्पृष्ट आदि रूप दिखाई देता है वह इस दृष्टिसे तो सत्यार्थ ही है, परन्तु शुद्धनयकी दृष्टिसे
बद्धस्पृष्टादिता असत्यार्थ है
इस कथनमें टीकाकार आचार्यने स्याद्वाद बताया है ऐसा जानना
और, यहां यह समझना चाहिए कि यह नय है सो श्रुतज्ञान-प्रमाणका अंश है; श्रुतज्ञान
वस्तुको परोक्ष बतलाता है; इसलिए यह नय भी परोक्ष ही बतलाता है शुद्ध द्रव्यार्थिकनयका
विषयभूत, बद्धस्पृष्ट आदि पांच भावोंसे रहित आत्मा चैतन्यशक्तिमात्र है वह शक्ति तो आत्मामें
परोक्ष है ही; और उसकी व्यक्ति कर्मसंयोगसे मतिश्रुतादि ज्ञानरूप है वह कथंचित् अनुभवगोचर
होनेसे प्रत्यक्षरूप भी क हलाती है, और सम्पूर्णज्ञान
केवलज्ञान यद्यपि छद्मस्थके प्रत्यक्ष नहीं है
तथापि यह शुद्धनय आत्माके केवलज्ञानरूपको परोक्ष बतलाता है जब तक जीव इस नयको नहीं
जानता तब तक आत्माके पूर्ण रूपका ज्ञान-श्रद्धान नहीं होता इसलिए श्री गुरुने इस शुद्धनयको
प्रगट करके उपदेश किया है कि बद्धस्पृष्ट आदि पाँच भावोंसे रहित पूर्णज्ञानघनस्वभाव आत्माको
जानकर श्रद्धान करना चाहिए, पर्यायबुद्धि नहीं रहना चाहिए
यहाँ कोई ऐसा प्रश्न करे किऐसा आत्मा प्रत्यक्ष तो दिखाई नहीं देता और बिना देखे
श्रद्धान करना असत्य श्रद्धान है उसका उत्तर यह है :देखे हुएका श्रद्धान करना तो नास्तिक
मत है जिनमतमें तो प्रत्यक्ष और परोक्षदोनों प्रमाण माने गये हैं उनमेंसे आगमप्रमाण परोक्ष
है उसका भेद शुद्धनय है इस शुद्धनयकी दृष्टिसे शुद्ध आत्माका श्रद्धान करना चाहिए, केवल
व्यवहार-प्रत्यक्षका ही एकान्त नहीं करना चाहिए ।।१४।।
यहाँ, इस शुद्धनयको मुख्य करके कलशरूप काव्य कहते हैं :
श्लोकार्थ :[जगत् तम् एव सम्यक्स्वभावम् अनुभवतु ] जगतके प्राणी इस सम्यक्
स्वभावका अनुभव करो कि [यत्र ] जहाँ [अमी बद्धस्पृष्टभावादयः ] यह बद्धस्पृष्टादिभाव [एत्य
स्फु टम् उपरि तरन्तः अपि ]
स्पष्टतया उस स्वभावके ऊ पर तरते हैं तथापि वे [प्रतिष्ठाम् न हि
विदधति ]
(उसमें) प्रतिष्ठा नहीं पाते, क्योंकि द्रव्यस्वभाव तो नित्य है, एकरूप है और यह भाव
अनित्य हैं, अनेकरूप हैं; पर्यायें द्रव्यस्वभावमें प्रवेश नहीं करती, ऊ पर ही रहती हैं
[समन्तात्
द्योतमानं ] यह शुद्ध स्वभाव सर्व अवस्थाओंमें प्रकाशमान है [अपगतमोहीभूय ] ऐसे शुद्ध