Samaysar (Hindi).

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यथा हि कश्चित्पुरुषोऽर्थार्थी प्रयत्नेन प्रथममेव राजानं जानीते, ततस्तमेव श्रद्धत्ते,
ततस्तमेवानुचरति, तथात्मना मोक्षार्थिना प्रथममेवात्मा ज्ञातव्यः, ततः स एव श्रद्धातव्यः, ततः
स एवानुचरितव्यश्च, साध्यसिद्धेस्तथान्यथोपपत्त्यनुपपत्तिभ्याम
तत्र यदात्मनोऽनुभूयमानानेक-
भावसंक रेऽपि परमविवेककौशलेनायमहमनुभूतिरित्यात्मज्ञानेन संगच्छमानमेव तथेतिप्रत्ययलक्षणं
श्रद्धानमुत्प्लवते तदा समस्तभावान्तरविवेकेन निःशंक मवस्थातुं शक्यत्वादात्मानुचरण-
मुत्प्लवमानमात्मानं साधयतीति साध्यसिद्धेस्तथोपपत्तिः
यदा त्वाबालगोपालमेव सकलकालमेव
५०
समयसार
[ भगवानश्रीकुन्दकुन्द-
पुरुष [राजानं ] राजाको [ज्ञात्वा ] जानकर [श्रद्दधाति ] श्रद्धा करता है, [ततः पुनः ] तत्पश्चात्
[तं प्रयत्नेन अनुचरति ] उसका प्रयत्नपूर्वक अनुचरण करता है अर्थात् उसकी सुन्दर रीतिसे सेवा
करता है, [एवं हि ] इसीप्रकार [मोक्षकामेन ] मोक्षके इच्छुकको [जीवराजः ] जीवरूपी राजाको
[ज्ञातव्यः ] जानना चाहिए, [पुनः च ] और फि र [तथा एव ] इसीप्रकार [श्रद्धातव्यः ] उसका
श्रद्धान करना चाहिए [तु च ] और तत्पश्चात् [ स एव अनुचरितव्यः ] उसीका अनुसरण करना
चाहिए अर्थात् अनुभवके द्वारा तन्मय हो जाना चाहिये
टीका :निश्चयसे जैसे कोई धनका अर्थी पुरुष बहुत उद्यमसे पहले तो राजाको
जाने कि यह राजा है, फि र उसीका श्रद्धान करे कि ‘यह अवश्य राजा ही है, इसकी सेवा
करनेसे अवश्य धनकी प्राप्ति होगी’ और तत्पश्चात् उसीका अनुचरण करे, सेवा करे, आज्ञामें
रहे, उसे प्रसन्न करे; इसीप्रकार मोक्षार्थी पुरुषको पहले तो आत्माको जानना चाहिए, और
फि र उसीका श्रद्धान करना चाहिये कि ‘यही आत्मा है, इसका आचरण करनेसे अवश्य
कर्मोंसे छूटा जा सकेगा’ और तत्पश्चात् उसीका अनुचरण करना चाहिए
अनुभवके द्वारा
उसमें लीन होना चाहिए; क्योंकि साध्य जो निष्कर्म अवस्थारूप अभेद शुद्धस्वरूप उसकी
सिद्धिकी इसीप्रकार उपपत्ति है, अन्यथा अनुपपत्ति है (अर्थात् इसीप्रकारसे साध्यकी सिद्धि
होती है, अन्य प्रकारसे नहीं)
(इसी बातको विशेष समझाते हैं :) जब आत्माको, अनुभवमें आनेवाले अनेक
पर्यायरूप भेदभावोंके साथ मिश्रितता होने पर भी सर्व प्रकारसे भेदज्ञानमें प्रवीणतासे ‘जो यह
अनुभूति है सो ही मैं हूँ’ ऐसे आत्मज्ञानसे प्राप्त होनेवाला, यह आत्मा जैसा जाना वैसा ही
है इसप्रकारकी प्रतीति जिसका लक्षण है ऐसा, श्रद्धान उदित होता है तब समस्त
अन्यभावोंका भेद होनेसे निःशंक स्थिर होनेमें समर्थ होनेसे आत्माका आचरण उदय होता
हुआ आत्माको साधता है
ऐसे साध्य आत्माकी सिद्धिकी इसप्रकार उपपत्ति है
परन्तु जब ऐसा अनुभूतिस्वरूप भगवान आत्मा आबालगोपाल सबके सदाकाल स्वयं ही