Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 95.

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समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

पामे छे. द्रष्टांत(तोयवत्) पाणीनी माफक. शुं करतो थको? ‘‘आत्मानम् आत्मनि सदा आहरन्’’ पोताने पोतामां निरन्तर अनुभवतो थको. केवो छे आत्मा? ‘‘तदेकरसिनाम् विज्ञानैकरसः’’ (तदेकरसिनाम्) अनुभवरसिक छे जे पुरुषो तेमने (विज्ञानैकरसः) ज्ञानगुण-आस्वादरूप छे. केवो थयो छे? ‘‘निजौघात् च्युतः’’ (निजौघात्) जेम पाणीनो शीत, स्वच्छ, द्रवत्व स्वभाव छे, ते स्वभावथी क्यारेक च्युत थाय छे, पोताना स्वभावने छोडे छे, तेम जीवद्रव्यनो स्वभाव केवळज्ञान, केवळदर्शन, अतीन्द्रिय सुख इत्यादि अनंत गुणस्वरूप छे, तेनाथी (च्युतः) अनादि काळथी भ्रष्ट थयो छे, विभावरूप परिणम्यो छे. भ्रष्टपणुं जे रीते छे ते कहे छे‘‘दूरं भूरिविकल्पजालगहने भ्राम्यन्’’ (दूरं) अनादि काळथी (भूरि) अति बहु छे (विकल्प) कर्मजनित जेटला भाव तेमनामां आत्मरूप संस्कारबुद्धि, तेनो (जाल) समूह, ते ज छे (गहने) अटवीवन, तेमां (भ्राम्यन्) भ्रमण करतो थको. भावार्थ आम छे के जेम पाणी पोताना स्वादथी भ्रष्ट थयुं थकुं नाना वृक्षोरूपे परिणमे छे तेम जीवद्रव्य पोताना शुद्धस्वरूपथी भ्रष्ट थयुं थकुं नाना प्रकारना चतुर्गतिपर्यायरूपे पोताने आस्वादे छे. थयो तो केवो थयो? ‘‘बलात् निजौघं नीतः’’ (बलात्) बळजोरीथी (निजौघं) पोतानी शुद्धस्वरूपलक्षण निष्कर्म अवस्था (नीतः) ते-रूप परिणम्यो छे. आवो जे कारणथी थयो ते कहे छे‘‘दूरात् एव’’ अनंत काळ फरतां प्राप्त थयो छे एवो जे ‘‘विवेकनिम्नगमनात्’’ (विवेक) शुद्धस्वरूपनो अनुभव एवो जे (निम्नगमनात्) नीचो मार्ग, ते कारणथी जीवद्रव्यनुं जेवुं स्वरूप हतुं तेवुं प्रगट थयुं. भावार्थ आम छे केजेवी रीते पाणी पोताना स्वरूपथी भ्रष्ट थाय छे, काळ निमित्त पामी फरीने जळरूप थाय छे. नीचा मार्गथी ढळतुं थकुं पुंजरूप पण थाय छे, तेवी रीते जीवद्रव्य अनादिथी स्वरूपथी भ्रष्ट छे, शुद्धस्वरूपलक्षण सम्यक्त्वगुण प्रगट थतां मुक्त थाय छे. आवो द्रव्यनो परिणाम छे. ४९९४.

(अनुष्टुप)
विकल्पकः परं कर्ता विकल्पः कर्म केवलम्
न जातु कर्तृकर्मत्वं सविकल्पस्य नश्यति ।।५०-९५।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘सविकल्पस्य कर्तृकर्मत्वं जातु न नश्यति’’ (सविकल्पस्य) कर्मजनित छे जे अशुद्ध रागादि भाव तेमने पोतारूप जाणे छे एवा