कहानजैनशास्त्रमाळा ]
मिथ्याद्रष्टि जीवने (कर्तृकर्मत्वं) कर्तापणुं-कर्मपणुं (जातु) सर्व काळ (न नश्यति) मटतुं नथी, कारण के ‘‘परं विकल्पकः कर्ता, केवलम् विकल्पः कर्म’’ (विकल्पकः) विभाव- मिथ्यात्व-परिणामे परिणम्यो छे जे जीव (परं) ते ज मात्र (कर्ता) जे भावरूप परिणमे तेनो कर्ता अवश्य थाय छे; (विकल्पः) मिथ्यात्व-रागादिरूप अशुद्ध चेतनपरिणाम (केवलम्) ते ज मात्र (क र्म) जीवनुं कार्य जाणवुं. भावार्थ आम छे – कोई एम मानशे के जीवद्रव्य सदाय अकर्ता छे; तेनुं आम समाधान छे के जेटलो काळ जीवनो सम्यक्त्वगुण प्रगट थतो नथी तेटलो काळ जीव मिथ्याद्रष्टि छे; मिथ्याद्रष्टि होय तो अशुद्ध परिणामनो कर्ता थाय छे, परंतु ज्यारे सम्यकत्वगुण प्रगट थाय छे त्यारे अशुद्ध परिणाम मटे छे, त्यारे अशुद्ध परिणामनो कर्ता थतो नथी. ५० – ९५.
यस्तु वेत्ति स तु वेत्ति केवलम् ।
यस्तु वेत्ति न करोति स क्वचित् ।।५१-९६।।
खंडान्वय सहित अर्थः — आ अवसरे, सम्यग्द्रष्टि जीवनो अने मिथ्याद्रष्टि जीवनो परिणामभेद घणो छे ते कहे छे – ‘‘यः करोति सः केवलं करोति’’ (यः) जे कोई मिथ्याद्रष्टि जीव (करोति) मिथ्यात्व-रागादि परिणामरूप परिणमे छे (सः केवलं करोति) ते तेवा ज परिणामनो कर्ता थाय छे; ‘‘तु यः वेत्ति’’ जे कोई सम्यग्द्रष्टि जीव शुद्धस्वरूपना अनुभवरूप परिणमे छे ‘‘सः केवलम् वेत्ति’’ ते जीव ते ज्ञानपरिणामरूप छे, तेथी केवळ ज्ञाता छे, कर्ता नथी. ‘‘यः करोति सः क्वचित् न वेत्ति’’ जे कोई मिथ्याद्रष्टि जीव मिथ्यात्व-रागादिरूप परिणमे छे ते शुद्धस्वरूपनो अनुभवनशील एक ज काळे तो नथी होतो; ‘‘यः तु वेत्ति सः क्वचित् न करोति’’ जे कोई सम्यग्द्रष्टि जीव शुद्धस्वरूपने अनुभवे छे ते जीव मिथ्यात्व-रागादि भावनो परिणमनशील नथी होतो. भावार्थ आम छे के – सम्यक्त्व अने मिथ्यात्वना परिणाम परस्पर विरुद्ध छे. जेम सूर्यनो प्रकाश होतां