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संकलेशपरिणाम, ते परिणामोना निमित्तथी थाय छे जे अशाताकर्म-आदिथी मांडीने पापबंधरूप पुद्गलपिंड, ते बूरां छे, जीवने दुःखकर्ता छे. आवुं कोई जीव माने छे तेना प्रति समाधान आम छे के — जेम अशुभकर्म जीवने दुःख करे छे तेम शुभकर्म पण जीवने दुःख करे छे. कर्ममां तो भलुं कोई नथी, पोताना मोहने लईने मिथ्याद्रष्टि जीव कर्मने भलुं करीने माने छे. आवी भेदप्रतीति शुद्धस्वरूपनो अनुभव थयो त्यारथी होय छे. १ – १००.
दन्यः शूद्रः स्वयमहमिति स्नाति नित्यं तयैव ।
शूद्रौ साक्षादपि च चरतो जातिभेदभ्रमेण ।।२-१०१।।
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘द्वौ अपि एतौ साक्षात् शूद्रौ’’ (द्वौ अपि) विद्यमान बंने (एतौ) एवा छे — (साक्षात्) निःसंदेहपणे (शूद्रौ) बंने चंडाळ छे. शाथी? ‘‘शूद्रिकायाः उदरात् युगपत् निर्गतौ’’ कारण के (शूद्रिकायाः उदरात्) चंडालणीना पेटथी (युगपत् निर्गतौ) एकीसाथे जन्म्या छे. भावार्थ आम छे के — कोई चंडालणीए युगल बे पुत्र एकीसाथे जण्या; कर्मोना योगथी एक पुत्र ब्राह्मणनो प्रतिपालित थयो, ते तो ब्राह्मणनी क्रिया करवा लाग्यो; बीजो पुत्र चंडालणीनो प्रतिपालित थयो, ते तो चंडाळनी क्रिया करवा लाग्यो. हवे जो बंनेना वंशनी उत्पत्ति विचारीए तो बंने चंडाळ छे. तेवी रीते कोई जीवो दया, व्रत, शील, संयममां मग्न छे, तेमने शुभकर्म बंध पण थाय छे; कोई जीवो हिंसा-विषय-कषायमां मग्न छे, तेमने पापबंध पण थाय छे. ते बंने पोतपोतानी क्रियामां मग्न छे, मिथ्या द्रष्टिथी एम माने छे के शुभकर्म भलुं, अशुभकर्म बूरुं; तेथी आवा बंने जीवो मिथ्याद्रष्टि छे, बंने जीवो कर्मबंधकरणशील छे. केवा छे तेओ? ‘‘अथ च जातिभेदभ्रमेण चरतः’’ (अथ च) बंने चंडाळ छे तोपण (जातिभेद) जातिभेद अर्थात् ब्राह्मण-शूद्र एवा वर्णभेद ते-रूप छे