८८
खंडान्वय सहित अर्थः — अहीं कोई मतांतररूप थईने आशंका करे छे — एम कहे छे के कर्मभेद छेः कोई कर्म शुभ छे, कोई कर्म अशुभ छे. शा कारणथी? हेतुभेद छे, स्वभावभेद छे, अनुभवभेद छे, आश्रय भिन्न छे; — आ चार भेदोना कारणे कर्मभेद छे. त्यां हेतुनो अर्थात् कारणनो भेद छे. विवरण — संकलेशपरिणामथी अशुभकर्म बंधाय छे, विशुद्धपरिणामथी शुभबंध थाय छे. स्वभावभेद अर्थात् प्रकृतिभेद छे. विवरण — अशुभकर्मसंबंधी प्रकृति भिन्न छे — पुद्गलकर्मवर्गणा भिन्न छे; शुभकर्मसंबंधी प्रकृति भिन्न छे — पुद्गलकर्मवर्गणा पण भिन्न छे. अनुभव अर्थात् कर्मनो रस, तेनो पण भेद छे. विवरण — अशुभकर्मना उदये जीव नारकी थाय छे अथवा तिर्यंच थाय छे अथवा हीन मनुष्य थाय छे, त्यां अनिष्ट विषयसंयोगरूप दुःखने पामे छे; अशुभ कर्मनो स्वाद एवो छे. शुभ कर्मना उदये जीव देव थाय छे अथवा उत्तम मनुष्य थाय छे, त्यां इष्ट विषयसंयोगरूप सुखने पामे छे; शुभकर्मनो स्वाद एवो छे. तेथी स्वादभेद पण छे. आश्रय अर्थात् फळनी निष्पत्ति एवो पण भेद छे. विवरण – अशुभकर्मना उदये हीणो पर्याय थाय छे, त्यां अधिक संकलेश थाय छे, तेनाथी संसारनी परिपाटी थाय छे; शुभकर्मना उदये उत्तम पर्याय थाय छे, त्यां धर्मनी सामग्री मळे छे, ते धर्मनी सामग्रीथी जीव मोक्ष जाय छे, तेथी मोक्षनी परिपाटी शुभकर्म छे. — आवुं कोई मिथ्यावादी माने छे. तेना प्रति उत्तर आम छे के — ‘‘कर्मभेदः न हि’’ कोई कर्म शुभरूप, कोई कर्म अशुभरूप — एवो भेद तो नथी. शा कारणथी? ‘‘हेतुस्वभावानुभवाश्रयाणां सदा अपि अभेदात्’’ (हेतु) कर्मबंधनां कारण विशुद्धपरिणाम-संकलेशपरिणाम एवा बंने परिणाम अशुद्धरूप छे, अज्ञानरूप छे; तेथी कारणभेद पण नथी, कारण एक ज छे. (स्वभाव) शुभकर्म-अशुभकर्म एवां बंने कर्म पुद्गलपिंडरूप छे, तेथी एक ज स्वभाव छे, स्वभावभेद तो नथी. (अनुभव) रस ते पण एक ज छे, रसभेद तो नथी. विवरण — शुभकर्मना उदये जीव बंधायो छे, सुखी छे; अशुभकर्मना उदये जीव बंधायो छे, दुःखी छे; विशेष तो कांई नथी. (आश्रय) फळनी निष्पत्ति, ते पण एक ज छे, विशेष तो कांई नथी. विवरण — शुभकर्मना उदये संसार, तेवी ज रीते अशुभकर्मना उदये संसार; विशेष तो कांई नथी. आथी एवो अर्थ निश्चित थयो के कोई कर्म भलुं,