Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

खंडान्वय सहित अर्थःअहीं कोई मतांतररूप थईने आशंका करे छेएम कहे छे के कर्मभेद छेः कोई कर्म शुभ छे, कोई कर्म अशुभ छे. शा कारणथी? हेतुभेद छे, स्वभावभेद छे, अनुभवभेद छे, आश्रय भिन्न छे; चार भेदोना कारणे कर्मभेद छे. त्यां हेतुनो अर्थात् कारणनो भेद छे. विवरण संकलेशपरिणामथी अशुभकर्म बंधाय छे, विशुद्धपरिणामथी शुभबंध थाय छे. स्वभावभेद अर्थात् प्रकृतिभेद छे. विवरणअशुभकर्मसंबंधी प्रकृति भिन्न छे पुद्गलकर्मवर्गणा भिन्न छे; शुभकर्मसंबंधी प्रकृति भिन्न छेपुद्गलकर्मवर्गणा पण भिन्न छे. अनुभव अर्थात् कर्मनो रस, तेनो पण भेद छे. विवरण अशुभकर्मना उदये जीव नारकी थाय छे अथवा तिर्यंच थाय छे अथवा हीन मनुष्य थाय छे, त्यां अनिष्ट विषयसंयोगरूप दुःखने पामे छे; अशुभ कर्मनो स्वाद एवो छे. शुभ कर्मना उदये जीव देव थाय छे अथवा उत्तम मनुष्य थाय छे, त्यां इष्ट विषयसंयोगरूप सुखने पामे छे; शुभकर्मनो स्वाद एवो छे. तेथी स्वादभेद पण छे. आश्रय अर्थात् फळनी निष्पत्ति एवो पण भेद छे. विवरण अशुभकर्मना उदये हीणो पर्याय थाय छे, त्यां अधिक संकलेश थाय छे, तेनाथी संसारनी परिपाटी थाय छे; शुभकर्मना उदये उत्तम पर्याय थाय छे, त्यां धर्मनी सामग्री मळे छे, ते धर्मनी सामग्रीथी जीव मोक्ष जाय छे, तेथी मोक्षनी परिपाटी शुभकर्म छे.आवुं कोई मिथ्यावादी माने छे. तेना प्रति उत्तर आम छे के ‘‘कर्मभेदः न हि’’ कोई कर्म शुभरूप, कोई कर्म अशुभरूपएवो भेद तो नथी. शा कारणथी? ‘‘हेतुस्वभावानुभवाश्रयाणां सदा अपि अभेदात्’’ (हेतु) कर्मबंधनां कारण विशुद्धपरिणाम-संकलेशपरिणाम एवा बंने परिणाम अशुद्धरूप छे, अज्ञानरूप छे; तेथी कारणभेद पण नथी, कारण एक ज छे. (स्वभाव) शुभकर्म-अशुभकर्म एवां बंने कर्म पुद्गलपिंडरूप छे, तेथी एक ज स्वभाव छे, स्वभावभेद तो नथी. (अनुभव) रस ते पण एक ज छे, रसभेद तो नथी. विवरणशुभकर्मना उदये जीव बंधायो छे, सुखी छे; अशुभकर्मना उदये जीव बंधायो छे, दुःखी छे; विशेष तो कांई नथी. (आश्रय) फळनी निष्पत्ति, ते पण एक ज छे, विशेष तो कांई नथी. विवरणशुभकर्मना उदये संसार, तेवी ज रीते अशुभकर्मना उदये संसार; विशेष तो कांई नथी. आथी एवो अर्थ निश्चित थयो के कोई कर्म भलुं,