कहानजैनशास्त्रमाळा ]
कोई कर्म बूरुं एम तो नथी, बधुंय कर्म दुःखरूप छे. ‘‘तत् एकम् बन्धमार्गाश्रितम् इष्टं’’ (तत्) कर्म (एकम्) निःसंदेहपणे (बन्धमार्गाश्रितम्) बंधने करे छे, (इष्टं) गणधरदेवे एवुं मान्युं छे. शा कारणथी? कारण के ‘‘खलु समस्तं स्वयं बन्धहेतुः’’ (खलु) निश्चयथी (समस्तं) सर्व कर्मजाति (स्वयं बन्धहेतुः) पोते पण बंधरूप छे. भावार्थ आम छे के — पोते मुक्तस्वरूप होय तो कदाचित् मुक्तिने करे; कर्मजाति पोते स्वयं बंधपर्यायरूप पुद्गलपिंडपणे बंधायेली छे, ते मुक्ति कई रीते करशे? तेथी कर्म सर्वथा बंधमार्ग छे. ३ – १०२.
बन्धसाधनमुशन्त्यविशेषात् ।
ज्ञानमेव विहितं शिवहेतुः ।।४-१०३।।
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘यत् सर्वविदः सर्वम् अपि कर्म अविशेषात् बन्धसाधनम् उशन्ति’’ (यत्) जे कारणथी (सर्वविदः) सर्वज्ञ वीतराग, (सर्वम् अपि कर्म) जेटली शुभरूप व्रत-संयम-तप-शील-उपवास इत्यादि क्रिया अथवा विषय-कषाय- असंयम इत्यादि क्रिया तेने (अविशेषात्) एकसरखी द्रष्टिथी (बन्धसाधनम् उशन्ति) बंधनुं कारण कहे छे, [भावार्थ आम छे के — जेवी रीते जीवने अशुभ क्रिया करतां बंध थाय छे तेवी ज रीते शुभ क्रिया करतां जीवने बंध थाय छे, बंधनमां तो विशेष कांई नथी;] ‘‘तेन तत् सर्वम् अपि प्रतिषिद्धं’’ (तेन) ते कारणथी (तत्) कर्म (सर्वम् अपि) शुभरूप अथवा अशुभरूप (प्रतिषिद्धं) निषिद्ध कर्युं अर्थात् कोई मिथ्याद्रष्टि जीव शुभ क्रियाने मोक्षमार्ग जाणीने पक्ष करे छे तेनो निषेध कर्यो; एवो भाव स्थापित कर्यो के मोक्षमार्ग कोई कर्म नथी. ‘‘एव ज्ञानम् शिवहेतुः विहितं’’ (एव) निश्चयथी (ज्ञानम्) शुद्धस्वरूप-अनुभव (शिवहेतुः) मोक्षमार्ग छे, (विहितं) अनादि परंपरारूप एवो उपदेश. ४ – १०३.