तो अनुभव क्यां छे? उत्तर आम छे के प्रत्यक्षपणे वस्तुने आस्वादतां थकां अनुभव छे.’’
वळी, सम्यग्द्रष्टि जीव अने मिथ्याद्रष्टि जीवनी क्रिया एकसरखी होवा छतां बंनेना द्रव्यनो जे परिणनभेद होय छे ते पंडितजीए सुंदर रीते समजावेल छे. जेम के — ६७मा कलशना ‘‘तु ते सर्वे अपि अज्ञानिनः अज्ञाननिर्वृत्ताः भवन्ति ए खंडना भावार्थमां तेमणे स्पष्ट उल्लेख कर्यो छे के, ‘‘सम्यग्द्रष्टि जीवनी अने मिथ्याद्रष्टि जीवनी क्रिया तो एकसरखी छे, क्रिया संबंधी विषय-कषाय पण एकसरखा छे, परंतु द्रव्यनो परिणमनभेद छे. विवरण — सम्यग्द्रष्टिनुं द्रव्य शुद्धत्वरूप परिणम्युं छे तेथी जे कोई परिणाम बुद्धिपूर्वक अनुभवरूप छे अथवा विचाररूप छे अथवा व्रत-क्रियारूप छे अथवा भोगाभिलाषरूप छे अथवा चारित्रमोहना उदये क्रोध, मान, माया, लोभरूप छे ते सघळाय परिणाम ज्ञानजातिमां घटे छे, केम के जे कोइ परिणाम छे ते संवर-निर्जरानुं कारण छे; — एवो ज कोइ द्रव्यपरिणमननो विशेष छे. मिथ्याद्रष्टिनुं द्रव्य अशुद्धरूप परिणम्युं छे, तेथी जे कोइ मिथ्याद्रष्टिना परिणाम ते अनुभवरूप तो होता ज नथी; तेथी सूत्रसिद्धान्तना पाठरूप छे अथवा व्रत-तपश्चरणरूप छे अथवा क्रोध, मान, माया, लोभरूप छे, — आवा सघळा परिणाम अज्ञानजातिना छे, केम के बंधनुं कारण छे, संवर-निर्जरानुं कारण नथी; — द्रव्यनो एवो ज परिणमनविशेष छे.’’
आ प्रमाणे टीकाकार पं. राजमलजीए समयसार-कलशमां अंतर्गर्भित अध्यात्मतत्त्वना परम कल्याणकारी विविध भावोने अने तेना मर्मने सचोटपणे, सरळ भाषामां, विशदतापूर्वक अने जोरदार शैलीथी आ टीकामां खुल्ला कर्या छे.
टीकाकारनी आ कृति एटली मनोहर छे के अध्यात्मरसिक कविवर पंडित बनारसीदासजी उपर तेनी सुंदर छाप पडी हती. तेना आधारे पं. बनारसीदासजीए ‘नाटक समयसार’ नामनी हिंदी पदबद्ध रचना करी छे. नाटक समयसारमां पांडे राजमलजी तथा तेमना द्वारा रचायेली आ टीकाना संबंधमां पं. बनारसीदासजी लखे के —
उपरोक्त आ पदमां पं. बनारसीदासजीए पांडे राजमलजी अने तेमनी आ बालावबोध टीकाना संबंधमां जे कांई कहेवुं हतुं ते संक्षेपमां बधुं कही दीधुं छे. तेमणे ‘नाटक समयसार’नी हिन्दी भाषामां छंदबद्ध रचना आ टीकाना आधारे करी छे एवो भाव व्यक्त करतां तेओश्री लखे छे के —