पोतानी मंडळीना एक सदस्य श्री मानसिंहजीना आ ग्रंथ संबंधी भावो व्यक्त करतां पं. बनारसीदासजी नाटक समयसारमां छेल्ले लखे छे के —
आ प्रमाणे पांडे राजमलजी अने तेमना आ अध्यात्मरसभरपूर टीकाग्रंथ विषे पं. बनारसीदासजीना उद्गार छे. जेम पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनी प्रवचनबंसरीनो मुख्य सूर सम्यग्दर्शन तथा स्वात्मानुभवनो अचिंत्य अद्भूत महिमा छे तेम आ टीकानुं पण प्रधान कार्य समयसार-कलशमां अंतर्गर्भित सम्यग्दर्शन तथा स्वात्मानुभवनुं माहात्म्य स्पष्टपणे हृदयंगम कराववानुं छे. समयसार-कलशमां समायेलां आध्यात्मिक गूढ तत्त्वो सामान्य बुद्धिना जीवोने पण सुगमताथी समजाय ते रीते स्पष्टपणे व्यक्त करीने पंडित राजमलजीए अध्यात्मतत्त्वना जिज्ञासुओ पर खरेखर उपकार कर्यो छे.
समयसार-कलशना अध्यात्मभावोनां रहस्यने खोलनारी आ टीका जो, चालु देशभाषामां तेनो अनुवाद थइने, प्रकाशित थाय तो घणा जीवोने ते आध्यात्मिक भावो सुगमपणे समजवानो सुयोग बने; — आवो करुणाशील उपकारी भाव पूज्य गुरुदेवश्रीने उद्भववाथी तेनो अनुवाद चालु हिंदी भाषामां थयो अने छेवटे तेनुं गुजरातीमां आ भाषान्तर थयुं.
आ रीते आ ग्रंथ मुमुक्षु भव्य जीवोना हाथमां आववानो सुअवसर परम कृपाळु पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनी असीम कृपानुं सुखद फळ छे.