Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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( १३ )
नाटक समैसार हित जीका, सुगमरूप राजमली टीका
कवितबद्ध रचना जो होई, भाषा ग्रंथ पढै सब कोई ।।
तब बनारसी मनमें आनी, कीजै तो प्रगटै जिनवानी
पंच पुरुषकी आज्ञा लीनी, कवितबद्धकी रचना कीनी ।।
वळी, नाटक समयसारना अंतमां पं. बनारसीदासजी लखे छे के
अनुभौ-रसके रसियाने, तीन प्रकार एकत्र बखानै
समयसार कलसा अति नीका, राजमली सुगम यह टीका ।।
ताके अनुक्रम भाषा कीनी, बनारसी ज्ञाता रस लीनी
ऐसा ग्रंथ अपूरव पाया, तासैं सबका मनहिं लुभाया ।।

पोतानी मंडळीना एक सदस्य श्री मानसिंहजीना आ ग्रंथ संबंधी भावो व्यक्त करतां पं. बनारसीदासजी नाटक समयसारमां छेल्ले लखे छे के

मानसिंघ चिन्तन कियो, क्यौं पावै यह ग्रंथ
गोविंदसों इतनी कही, सरस सरस यह ग्रंथ ।।

आ प्रमाणे पांडे राजमलजी अने तेमना आ अध्यात्मरसभरपूर टीकाग्रंथ विषे पं. बनारसीदासजीना उद्गार छे. जेम पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनी प्रवचनबंसरीनो मुख्य सूर सम्यग्दर्शन तथा स्वात्मानुभवनो अचिंत्य अद्भूत महिमा छे तेम आ टीकानुं पण प्रधान कार्य समयसार-कलशमां अंतर्गर्भित सम्यग्दर्शन तथा स्वात्मानुभवनुं माहात्म्य स्पष्टपणे हृदयंगम कराववानुं छे. समयसार-कलशमां समायेलां आध्यात्मिक गूढ तत्त्वो सामान्य बुद्धिना जीवोने पण सुगमताथी समजाय ते रीते स्पष्टपणे व्यक्त करीने पंडित राजमलजीए अध्यात्मतत्त्वना जिज्ञासुओ पर खरेखर उपकार कर्यो छे.

समयसार-कलशना अध्यात्मभावोनां रहस्यने खोलनारी आ टीका जो, चालु देशभाषामां तेनो अनुवाद थइने, प्रकाशित थाय तो घणा जीवोने ते आध्यात्मिक भावो सुगमपणे समजवानो सुयोग बने; आवो करुणाशील उपकारी भाव पूज्य गुरुदेवश्रीने उद्भववाथी तेनो अनुवाद चालु हिंदी भाषामां थयो अने छेवटे तेनुं गुजरातीमां आ भाषान्तर थयुं.

आ रीते आ ग्रंथ मुमुक्षु भव्य जीवोना हाथमां आववानो सुअवसर परम कृपाळु पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनी असीम कृपानुं सुखद फळ छे.