Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration).

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

जीव-अधिकार
१५

‘‘ध्रुवं’’ चारे गतिमां भमतो अटकी गयो. वळी केवो छे? ‘‘देवः’’ त्रैलोक्यथी पूज्य छे. वळी केवो छे? ‘‘स्वयं शाश्वतः’’ द्रव्यरूप विद्यमान ज छे. वळी केवो थाय छे? ‘‘आत्मानुभवैकगम्यमहिमा’’ (आत्म) चेतनवस्तुना (अनुभव) प्रत्यक्षपणे आस्वादथी (एक) अद्वितीय (गम्य) गोचर छे (महिमा) मोटप जेनी एवो छे. भावार्थ आम छे के जीवनो जेम एक ज्ञानगुण छे तेम एक अतीन्द्रिय सुखगुण छे; ते सुखगुण संसार-अवस्थामां अशुद्धपणाने लीधे प्रगट आस्वादरूप नथी, अशुद्धपणुं जतां प्रगट थाय छे. ते सुख अतीन्द्रिय परमात्माने होय छे. ते सुखने कहेवा माटे कोई द्रष्टान्त चारे गतिओमां नथी, केम के चारे गतिओ दुःखरूप छे; तेथी एम कह्युं के जेने शुद्धस्वरूपनो अनुभव छे ते जीव परमात्मारूप जीवना सुखने जाणवाने योग्य छे, केम के शुद्धस्वरूप अनुभवतां अतीन्द्रिय सुख छेएवो भाव सूचव्यो छे. कोई प्रश्न करे छे के केवुं कारण करवाथी जीव शुद्ध थाय छे? उत्तर आम छे के शुद्धनो अनुभव करवाथी जीव शुद्ध थाय छे. ‘‘किल यदि कोऽपि सुधीः अन्तः कलयति’’ (किल) निश्चयथी (यदि) जो (कः अपि) कोई जीव (अन्तः कलयति) शुद्धस्वरूपने निरंतरपणे अनुभवे छे. केवो छे जीव? (सुधीः) शुद्ध छे बुद्धि जेनी. शुं करीने अनुभवे छे? ‘‘रभसा बन्धं निर्भिद्य’’ (रभसा) तत्काळ (बन्धं) द्रव्यपिंडरूप मिथ्यात्वकर्मना (निर्भिद्य) उदयने मिटावीने अथवा मूळथी सत्ता मिटावीने, तथा ‘‘हठात् मोहं व्याहत्य’’ (हठात्) बळथी (मोहं) मिथ्यात्वरूप जीवना परिणामने (व्याहत्य) मूळथी उखाडीने. भावार्थ आम छे के अनादि काळनो मिथ्याद्रष्टि ज जीव काळलब्धि पामतां सम्यक्त्वना ग्रहणकाळ पहेलां त्रण करणो करे छे; ते त्रण करणो अन्तर्मुहूर्तमां थाय छे; करणो करतां द्रव्यपिंडरूप मिथ्यात्वकर्मनी शक्ति मटे छे; ते शक्ति मटतां भावमिथ्यात्वरूप जीवना परिणाम मटे छे;जेम धतूराना रसनो पाक मटतां घेलछा मटे छे तेम. केवो छे बंध अथवा मोह? ‘‘भूतं भान्तम् अभूतम् एव’’ (एव) निश्चयथी (भूतं) अतीत काळसंबंधी, (भान्तम्) वर्तमान काळसंबंधी, (अभूतम्) आगामी काळसंबंधी. भावार्थ आम छेत्रिकाळ संस्काररूप छे जे शरीरादि साथे एकत्वबुद्धि, ते मटतां जे जीव शुद्ध जीवने अनुभवे छे ते जीव निश्चयथी कर्मोथी मुक्त थाय छे. १२.