Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 13.

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१६

समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
(वसन्ततिलका)
आत्मानुभूतिरिति शुद्धनयात्मिका या
ज्ञानानुभूतिरियमेव किलेति बुद्धवा
आत्मानमात्मनि निवेश्य सुनिष्प्रकम्प-
मेकोऽस्ति नित्यमवबोधघनः समन्तात्
।।१३।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘आत्मा सुनिष्प्रकम्पम् एकः अस्ति’’ (आत्मा) आत्मा अर्थात् चेतनद्रव्य (सुनिष्प्रकम्पम्) अशुद्ध परिणमनथी रहित (एकः) शुद्ध (अस्ति) थाय छे. केवो छे आत्मा? ‘‘नित्यं समन्तात् अवबोधघनः’’ (नित्यम्) सदा काळ (समन्तात्) सर्वांग (अवबोधघनः) ज्ञानगुणनो समूह छेज्ञानपुंज छे. शुं करीने आत्मा शुद्ध थाय छे? ‘‘आत्मना आत्मनि निवेश्य’’ (आत्मना) पोताथी (आत्मनि) पोतामां ज (निवेश्य) प्रविष्ट थईने. भावार्थ आम छे के आत्मानुभव परद्रव्यनी सहाय रहित छे तेथी पोतामां ज पोताथी आत्मा शुद्ध थाय छे. अहीं कोई प्रश्न करे छे के आ अवसरे तो एम कह्युं के आत्मानुभव करतां आत्मा शुद्ध थाय छे अने क्यांक एम कह्युं छे के ज्ञानगुणमात्र अनुभव करतां आत्मा शुद्ध थाय छे, तो आमां विशेषता शुं छे? उत्तर आम छे के विशेषता तो कांई पण नथी. ए ज कहे छे‘‘या शुद्धनयात्मिका आत्मानुभूतिः इति किल इयम् एव ज्ञानानुभूतिः इति बुद्धवा’’ (या) जे (आत्मानुभूतिः) आत्म-अनुभूति अर्थात् आत्मद्रव्यनो प्रत्यक्षपणे आस्वाद छे. केवी छे अनुभूति? (शुद्धनयात्मिका) शुद्धनय अर्थात् शुद्ध वस्तु ते ज छे आत्मा अर्थात् स्वभाव जेनो एवी छे. भावार्थ आम छे के निरुपाधिपणे जीवद्रव्य जेवुं छे तेवो ज प्रत्यक्षपणे आस्वाद आवे एनुं नाम शुद्धात्मानुभव छे. (किल) निश्चयथी (इयम् एव ज्ञानानुभूतिः) आ जे आत्मानुभूति कही ते ज ज्ञानानुभूति छे (इति बुद्धवा) एटलीमात्र जाणीने. भावार्थ आम छे के जीववस्तुनो जे प्रत्यक्षपणे आस्वाद, तेने नामथी आत्मानुभव एम कहेवाय अथवा ज्ञानानुभव एम कहेवाय; नामभेद छे, वस्तुभेद नथी. एम जाणवुं के आत्मानुभव मोक्षमार्ग छे. आ प्रसंगे बीजो पण संशय थाय छे के, कोई जाणशे के द्वादशांगज्ञान कोई अपूर्व लब्धि छे. तेनुं समाधान आम छे के द्वादशांगज्ञान