Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 14.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

जीव-अधिकार
१७

पण विकल्प छे. तेमां पण एम कह्युं छे के शुद्धात्मानुभूति मोक्षमार्ग छे. तेथी शुद्धात्मानुभूति थतां शास्त्र भणवानी कांई अटक (बंधन) नथी. १३.

(पृथ्वी)
अखण्डितमनाकुलं ज्वलदनन्तमन्तर्बहि-
र्महः परममस्तु नः सहजमुद्विलासं सदा
चिदुच्छलननिर्भरं सकलकालमालम्बते
यदेकरसमुल्लसल्लवणखिल्यलीलायितम्
।।१४।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘तत् महः नः अस्तु’’ (तत्) ते ज (महः) शुद्ध ज्ञानमात्र वस्तु (नः) अमने (अस्तु) हो. भावार्थ आम छे के शुद्धस्वरूपनो अनुभव उपादेय छे, बीजुं बधुं हेय छे. केवो छे ते ‘महः (ज्ञानमात्र आत्मा)’? ‘‘परमम्’’ उत्कृष्ट छे. वळी केवो छे ‘महः’? ‘‘अखण्डितम्’’ खंडित नथीपरिपूर्ण छे. भावार्थ आम छे के इन्द्रियज्ञान खंडित छे; ते जोके वर्तमान काळे ते-रूप परिणम्यो छे तोपण स्वरूप अतीन्द्रिय ज्ञान छे. वळी केवो छे? ‘‘अनाकुलं’’ आकुळता रहित छे. भावार्थ आम छे के यद्यपि संसार-अवस्थामां कर्मजनित सुखदुःखरूप परिणमे छे तथापि स्वाभाविक सुखस्वरूप छे.

××× वळी केवो छे? ‘‘अन्तर्बहिर्ज्वलत्’’

(अन्तः) अंदर (बहिः) बहार (ज्वलत्) प्रकाशरूप परिणमी रह्यो छे. भावार्थ आम छे के जीववस्तु असंख्यातप्रदेशी छे, ज्ञानगुण बधा प्रदेशोमां एकसरखो परिणमी रह्यो छे, कोई प्रदेशमां घट-वध नथी. वळी केवो छे? ‘‘सहजं’’ स्वयंसिद्ध छे. वळी केवो छे? ‘‘उद्विलासं’’ पोताना गुण-पर्याये धाराप्रवाहरूप परिणमे छे. वळी केवो छे? ‘‘यत् (महः) सकलकालम् एकरसम् आलम्बते’’ (यत्) जे (महः) ज्ञानपुंज (सकलकालम्) त्रणे काळ (एकरसम्) एकरसने अर्थात् चेतनास्वरूपने (आलम्बते) आधारभूत छे. केवो छे एकरस? ‘‘चिदुच्छलननिर्भरं’’ (चित्) ज्ञान-(उच्छलन) परिणमनथी (निर्भरं) भरितावस्थ छे. वळी केवो छे एकरस? ‘‘उल्लसत् लवणखिल्यलीलायितम् (लवण) क्षाररसनी (खिल्य) कांकरीनी (‘‘उल्लसत्’’ लीलायितम्)

* पं. श्री राजमलजीनी टीकामां अहीं ‘‘अनन्तम्’’ पदनो अर्थ करवो रही गयो छे.