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परिणति समान जेनो स्वभाव छे. भावार्थ आम छे के जेवी रीते लवणनी कांकरी सर्वांगेय क्षार छे तेवी रीते चेतनद्रव्य सर्वांगेय चेतन छे. १४.
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘सिद्धिमभीप्सुभिः एषः आत्मा नित्यम् समुपास्यताम्’’ (सिद्धिम्) सकळकर्मक्षयलक्षण मोक्षने (अभीप्सुभिः) उपादेयपणे अनुभवनारा जीवोए (एषः आत्मा) आ आत्माने अर्थात् उपादेय एवा पोताना शुद्ध चैतन्यद्रव्यने (नित्यम्) सदा काळ (समुपास्यताम्) अनुभववो. केवो छे आत्मा? ‘‘ज्ञानघनः’’ (ज्ञान) स्व-परग्राहकशक्तिनो (घनः) पुंज छे. वळी केवो छे? ‘‘एकः’’ समस्त विकल्प रहित छे. वळी केवो छे? ‘‘साध्यसाधकभावेन द्विधा’’ (साध्य) सकळकर्मक्षयलक्षण मोक्ष, (साधक) मोक्षनुं कारण शुद्धोपयोगलक्षण शुद्धात्मानुभव — (भावेन) एवी जे बे अवस्था, तेमना भेदथी, (द्विधा) बे प्रकारनो छे. भावार्थ आम छे के एक ज जीवद्रव्य कारणरूप पण पोतामां ज परिणमे छे अने कार्यरूप पण पोतामां ज परिणमे छे, तेथी मोक्ष जवामां कोई द्रव्यान्तरनो सहारो नथी, माटे शुद्ध आत्मानो अनुभव करवो जोईए. १५.
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘आत्मा मेचकः’’ (आत्मा) चेतनद्रव्य (मेचकः) मलिन छे. कोनी अपेक्षाए मलिन छे? ‘‘दर्शन-ज्ञान-चारित्रैस्त्रित्वात्’’ सामान्यपणे अर्थग्राहक शक्तिनुं नाम दर्शन छे, विशेषपणे अर्थग्राहक शक्तिनुं नाम ज्ञान छे अने शुद्धत्वशक्तिनुं नाम चारित्र छे — आम शक्तिभेद करतां एक जीव त्रण प्रकारे थाय छे, तेथी मलिन कहेवानो व्यवहार छे. ‘‘आत्मा अमेचकः’’ (आत्मा) चेतनद्रव्य (अमेचकः) निर्मळ छे; कोनी अपेक्षाए निर्मळ छे? ‘‘स्वयम् एकत्वतः’’ (स्वयम्) द्रव्यनुं