Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 15-16.

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१८

समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

परिणति समान जेनो स्वभाव छे. भावार्थ आम छे के जेवी रीते लवणनी कांकरी सर्वांगेय क्षार छे तेवी रीते चेतनद्रव्य सर्वांगेय चेतन छे. १४.

(अनुष्टुप)
एष ज्ञानघनो नित्यमात्मा सिद्धिमभीप्सुभिः
साध्यसाधकभावेन द्विधैकः समुपास्यताम् ।।१५।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘सिद्धिमभीप्सुभिः एषः आत्मा नित्यम् समुपास्यताम्’’ (सिद्धिम्) सकळकर्मक्षयलक्षण मोक्षने (अभीप्सुभिः) उपादेयपणे अनुभवनारा जीवोए (एषः आत्मा) आ आत्माने अर्थात् उपादेय एवा पोताना शुद्ध चैतन्यद्रव्यने (नित्यम्) सदा काळ (समुपास्यताम्) अनुभववो. केवो छे आत्मा? ‘‘ज्ञानघनः’’ (ज्ञान) स्व-परग्राहकशक्तिनो (घनः) पुंज छे. वळी केवो छे? ‘‘एकः’’ समस्त विकल्प रहित छे. वळी केवो छे? ‘‘साध्यसाधकभावेन द्विधा’’ (साध्य) सकळकर्मक्षयलक्षण मोक्ष, (साधक) मोक्षनुं कारण शुद्धोपयोगलक्षण शुद्धात्मानुभव (भावेन) एवी जे बे अवस्था, तेमना भेदथी, (द्विधा) बे प्रकारनो छे. भावार्थ आम छे के एक ज जीवद्रव्य कारणरूप पण पोतामां ज परिणमे छे अने कार्यरूप पण पोतामां ज परिणमे छे, तेथी मोक्ष जवामां कोई द्रव्यान्तरनो सहारो नथी, माटे शुद्ध आत्मानो अनुभव करवो जोईए. १५.

(अनुष्टुप)
दर्शनज्ञानचारित्रैस्त्रित्वादेकत्वतः स्वयम्
मेचकोऽमेचकश्चापि सममात्मा प्रमाणतः ।।१६।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘आत्मा मेचकः’’ (आत्मा) चेतनद्रव्य (मेचकः) मलिन छे. कोनी अपेक्षाए मलिन छे? ‘‘दर्शन-ज्ञान-चारित्रैस्त्रित्वात्’’ सामान्यपणे अर्थग्राहक शक्तिनुं नाम दर्शन छे, विशेषपणे अर्थग्राहक शक्तिनुं नाम ज्ञान छे अने शुद्धत्वशक्तिनुं नाम चारित्र छेआम शक्तिभेद करतां एक जीव त्रण प्रकारे थाय छे, तेथी मलिन कहेवानो व्यवहार छे. ‘‘आत्मा अमेचकः’’ (आत्मा) चेतनद्रव्य (अमेचकः) निर्मळ छे; कोनी अपेक्षाए निर्मळ छे? ‘‘स्वयम् एकत्वतः’’ (स्वयम्) द्रव्यनुं