Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 17-18.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

जीव-अधिकार
१९

सहज (एकत्वतः) निर्भेदपणुं होवाथी;आवो निश्चयनय कहेवाय छे. ‘‘आत्मा प्रमाणतः समम् मेचकः अमेचकः अपि च’’ (आत्मा) चेतनद्रव्य (समम्) एक ज काळे (मेचकः अमेचकः अपि च) मलिन पण छे अने निर्मळ पण छे. कोनी अपेक्षाए? (प्रमाणतः) युगपद् अनेक धर्मग्राहक ज्ञाननी अपेक्षाए. तेथी प्रमाणद्रष्टिए जोतां एक ज काळे जीवद्रव्य भेदरूप पण छे, अभेदरूप पण छे. १६.

(अनुष्टुप)
दर्शनज्ञानचारित्रैस्त्रिभिः परिणतत्वतः
एकोऽपि त्रिस्वभावत्वाद्वयवहारेण मेचकः ।।१७।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘एकः अपि व्यवहारेण मेचकः’’ (एकः अपि) द्रव्यद्रष्टिथी जोके जीवद्रव्य शुद्ध छे तोपण (व्यवहारेण) गुण-गुणीरूप भेदद्रष्टिथी (मेचकः) मलिन छे. ते पण कोनी अपेक्षाए? ‘‘त्रिस्वभावत्वात्’’ (त्रि) दर्शन-ज्ञान- चारित्र, ते त्रण छे (स्वभावत्वात्) सहज गुणो जेना, एवुं होवाथी. ते पण केवुं होवाथी? ‘‘दर्शन-ज्ञान-चारित्रैः त्रिभिः परिणतत्वतः’’ केम के ते दर्शन-ज्ञान-चारित्र ए त्रण गुणोरूपे परिणमे छे, तेथी भेदबुद्धि पण घटे छे. १७.

(अनुष्टुप)
परमार्थेन तु व्यक्तज्ञातृत्वज्योतिषैककः
सर्वभावान्तरध्वंसिस्वभावत्वादमेचकः ।।१८।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘तु परमार्थेन एककः अमेचकः’’ (तु) ‘तु’ पद द्वारा बीजो पक्ष कयो छे ते व्यक्त कर्युं छे. (परमार्थेन) परमार्थथी अर्थात् शुद्ध द्रव्यद्रष्टिथी (एककः) शुद्ध जीववस्तु (अमेचकः) निर्मळ छेनिर्विकल्प छे. केवो छे परमार्थ? ‘‘व्यक्तज्ञातृत्वज्योतिषा’’ (व्यक्त) प्रगट छे (ज्ञातृत्व) ज्ञानमात्र (ज्योतिषा) प्रकाश- स्वरूप जेमां एवो छे. भावार्थ आम छे के शुद्धनिर्भेद वस्तुमात्रग्राहक ज्ञान निश्चयनय कहेवाय छे. ते निश्चयनयथी जीवपदार्थ सर्वभेदरहित शुद्ध छे. वळी केवो होवाथी शुद्ध छे? ‘‘सर्वभावान्तरध्वंसिस्वभावत्वात्’’ (सर्व) समस्त द्रव्यकर्म-भावकर्म- नोकर्म अथवा ज्ञेयरूप परद्रव्य एवा जे (भावान्तर) उपाधिरूप विभावभाव तेमनुं