Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 19-20.

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२०

समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

(ध्वंसि) मेटनशील (मटाडवाना स्वभाववाळुं) छे (स्वभावत्वात्) निजस्वरूप जेनुं, एवो स्वभाव होवाथी शुद्ध छे. १८.

(अनुष्टुप)
आत्मनश्चिन्तयैवालं मेचकामेचकत्वयोः
दर्शनज्ञानचारित्रैः साध्यसिद्धिर्न चान्यथा ।।१९।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘मेचकामेचकत्वयोः आत्मनः चिन्तया एव अलं’’ आत्मा (मेचक) ‘मलिन छे’ अने (अमेचक) ‘निर्मळ छे’आम आ बंने नयो पक्षपातरूप छे; (आत्मनः) चेतनद्रव्यना आवा (चिन्तया) विचारथी (अलं) बस थाओ; आवो विचार करवाथी तो साध्यनी सिद्धि नथी थती (एव) एम नक्की जाणवुं. भावार्थ आम छे के श्रुतज्ञानथी आत्मस्वरूप विचारतां घणा विकल्पो ऊपजे छे; एक पक्षथी विचारतां आत्मा अनेकरूप छे, बीजा पक्षथी विचारतां आत्मा अभेदरूप छेआम विचारतां थकां तो स्वरूप-अनुभव नथी. अहीं कोई प्रश्न करे छे के विचारतां थकां तो अनुभव नथी, तो अनुभव क्यां छे? उत्तर आम छे के प्रत्यक्षपणे वस्तुने आस्वादतां थकां अनुभव छे. ते ज कहे छे‘‘दर्शन-ज्ञान-चारित्रैः साध्यसिद्धिः’’ (दर्शन) शुद्धस्वरूपनुं अवलोकन, (ज्ञान) शुद्धस्वरूपनुं प्रत्यक्ष जाणपणुं, (चारित्र) शुद्धस्वरूपनुं आचरणआवां कारणो करवाथी (साध्य) सकळकर्मक्षयलक्षण मोक्षनी (सिद्धिः) प्राप्ति थाय छे. भावार्थ आम छे के शुद्धस्वरूपनो अनुभव करतां मोक्षनी प्राप्ति छे. कोई प्रश्न करे छे के आटलो ज मोक्षमार्ग छे के कंई अन्य पण मोक्षमार्ग छे? उत्तर आम छे के आटलो ज मोक्षमार्ग छे. ‘‘न च अन्यथा’’ (च) परंतु (अन्यथा) अन्य प्रकारे (न) साध्यसिद्धि नथी थती. १९.

(मालिनी)
कथमपि समुपात्तत्रित्वमप्येकतायाः
अपतितमिदमात्मज्योतिरुद्गच्छदच्छम्
सततमनुभवामोऽनन्तचैतन्यचिह्नं
न खलु न खलु यस्मादन्यथा साध्यसिद्धिः
।।२०।।