Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 21.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

जीव-अधिकार
२१

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘इदम् आत्मज्योतिः सततम् अनुभवामः’’ (इदम्) प्रगट (आत्मज्योतिः) आत्मज्योतिने अर्थात् चैतन्यप्रकाशने (सततम्) निरंतर (अनुभवामः) प्रत्यक्षपणे अमे आस्वादीए छीए. केवी छे आत्मज्योति? ‘‘कथमपि समुपात्तत्रित्वम् अपि एकतायाः अपतितम्’’ (कथम् अपि) व्यवहारद्रष्टिथी (समुपात्तत्रित्वम्) ग्रहण कर्या छे त्रण भेद जेणे एवी छे तोपण (एकतायाः) शुद्धपणाथी (अपतितम्) पडती नथी. वळी केवी छे आत्मज्योति? ‘‘उद्गच्छत्’’ प्रकाशरूप परिणमे छे. वळी केवी छे? ‘‘अच्छम्’’ निर्मळ छे. वळी केवी छे? ‘‘अनन्तचैतन्यचिह्नं’’ (अनन्त) अति घणुं (चैतन्य) ज्ञान छे (चिह्नं) लक्षण जेनुं एवी छे. कोई आशंका करे छे के अनुभवने बहु द्रढ कर्यो ते शा कारणे? ते ज कहे छे‘‘यस्मात् अन्यथा साध्यसिद्धिः न खलु न खलु’’ (यस्मात्) कारण के (अन्यथा) अन्य प्रकारे (साध्यसिद्धिः) स्वरूपनी प्राप्ति (न खलु न खलु) नथी थती, नथी थती, एम नक्की छे. २०.

(मालिनी)
कथमपि हि लभन्ते भेदविज्ञानमूला-
मचलितमनुभूतिं ये स्वतो वान्यतो वा
प्रतिफलननिमग्नानन्तभावस्वभावै-
र्मुकुरवदविकाराः सन्ततं स्युस्त एव
।।२१।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘ये अनुभूतिं लभन्ते’’ (ये) जे कोई निकट संसारी जीव (अनुभूतिं) अनुभूति अर्थात् शुद्ध जीववस्तुनो आस्वाद (लभन्ते) पामे छे. केवी छे अनुभूति? ‘‘भेदविज्ञानमूलाम्’’ (भेद) स्वस्वरूप-परस्वरूपने द्विधा करवुं एवुं जे (विज्ञान) जाणपणुं ते ज छे (मूलाम्) सर्वस्व जेनुं एवी छे. वळी केवी छे? ‘‘अचलितम्’’ स्थिरतारूप छे. आवी अनुभूति कई रीते पमाय छे, ते ज कहे छे‘‘कथमपि स्वतो वा अन्यतो वा’’ (क थमपि) अनंत संसारमां भ्रमण करतां केमेय करीने काळलब्धि प्राप्त थाय छे त्यारे सम्यक्त्व ऊपजे छे, त्यारे अनुभव थाय छे; (स्वतः वा) मिथ्यात्वकर्मनो उपशम होतां उपदेश विना ज अनुभव थाय छे, (अन्यतः वा) अथवा अंतरंगमां मिथ्यात्वकर्मनो उपशम होतां अने बहिरंगमां