Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 22.

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२२

समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

गुरुनी समीप सूत्रनो उपदेश मळतां अनुभव थाय छे. कोई प्रश्न करे छे के जेओ अनुभव पामे छे तेओ अनुभव पामवाथी केवा होय छे? उत्तर आम छे के तेओ निर्विकार होय छे. ते ज कहे छे‘‘ते एव सन्ततं मुकुरवत् अविकाराः स्युः’’ (ते एव) ते ज जीवो (सन्ततं) निरंतरपणे (मुकुरवत्) अरीसानी पेठे (अविकाराः) रागद्वेष रहित (स्युः) छे. शानाथी निर्विकार छे? ‘‘प्रतिफलननिमग्नानन्तभावस्वभावैः’’ (प्रतिफलन) प्रतिबिंबरूपे (निमग्न) गर्भित जे (अनन्तभाव) सकळ द्रव्योना (स्वभावैः) गुण-पर्यायो, तेमनाथी निर्विकार छे. भावार्थ आम छे के जे जीवना शुद्ध स्वरूपने अनुभवे छे तेना ज्ञानमां सकळ पदार्थो उद्दीप्त थाय छे, तेमना भाव अर्थात् गुण-पर्यायो, तेमनाथी निर्विकाररूप अनुभव छे. २१.

(मालिनी)
त्यजतु जगदिदानीं मोहमाजन्मलीढं
रसयतु रसिकानां रोचनं ज्ञानमुद्यत्
इह कथमपि नात्माऽनात्मना साकमेकः
किल कलयति काले क्वापि तादात्म्यवृत्तिम्
।।२२।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘जगत् मोहम् त्यजतु’’ (जगत्) संसारी जीवराशि (मोहम्) मिथ्यात्वपरिणामने (त्यजतु) सर्वथा छोडो. छोडवानो अवसर कयो? ‘‘इदानीं’’ तत्काळ. भावार्थ आम छे के शरीरादि परद्रव्यो साथे जीवनी एकत्वबुद्धि विद्यमान छे, ते सूक्ष्मकाळमात्र पण आदर करवायोग्य नथी. केवो छे मोह? ‘‘आजन्मलीढं’’ (आजन्म) अनादिकाळथी (लीढं) लागेलो छे. ‘‘ज्ञानम् रसयतु’’ (ज्ञानम्) ज्ञानने अर्थात् शुद्ध चैतन्यवस्तुने (रसयतु) स्वानुभव-प्रत्यक्षपणे आस्वादो. केवुं छे ज्ञान? ‘‘रसिकानां रोचनं’’ (रसिकानां) शुद्धस्वरूपना अनुभवशील सम्यग्द्रष्टि जीवोने (रोचनं) अत्यंत सुखकारी छे. वळी केवुं छे ज्ञान? ‘‘उद्यत्’’ त्रणे काळ प्रकाशरूप छे. कोई प्रश्न करे छे के आम करतां कार्यसिद्धि केवी थाय छे? उत्तर कहे छे‘‘इह किल एकः आत्मा अनात्मना साकम् तादात्म्यवृत्तिम् क्वापि काले कथमपि न कलयति’’ (इह) मोहनो त्याग, ज्ञानवस्तुनो अनुभवआम वारंवार अभ्यास करतां (किल) निःसंदेहपणे (एकः)