कहानजैनशास्त्रमाळा ]
शुद्ध (आत्मा) चेतनद्रव्य (अनात्मना) द्रव्यकर्म-भावकर्म-नोकर्म आदि समस्त विभावपरिणामोनी (साकम्) साथे (तादात्म्यवृत्तिम्) जीव अने कर्मना बंधात्मक एकक्षेत्रसंबंधरूपे (क्वापि) कोई पण अतीत, अनागत अने वर्तमानसंबंधी (काले) समय, घडी, प्रहर, दिवस के वर्षे (कथमपि) कोई पण रीते (न कलयति) नथी रहेतुं. भावार्थ आम छे केः — जीवद्रव्य धातु अने पाषाणना संयोगनी पेठे पुद्गलकर्मोनी साथे मळेलुं ज चाल्युं आवे छे, अने मळेलुं होवाथी मिथ्यात्व-राग-द्वेषरूप विभाव- चेतनपरिणामे परिणमतुं ज आवे छे. एम परिणमतां एवी दशा नीपजी के जीवद्रव्यनुं निजस्वरूप जे केवळज्ञान, केवळदर्शन, अतीन्द्रिय सुख अने केवळवीर्य, तेनाथी आ जीवद्रव्य भ्रष्ट थयुं तथा मिथ्यात्वरूप विभावपरिणामे परिणमतां ज्ञानपणुं पण छूटी गयुं; जीवनुं निज स्वरूप अनंतचतुष्टय छे, शरीर, सुख, दुःख, मोह, राग, द्वेष इत्यादि बधुं पुद्गलकर्मनी उपाधि छे, जीवनुं स्वरूप नथी — एवी प्रतीति पण छूटी गई. प्रतीति छूटतां जीव मिथ्याद्रष्टि थयो; मिथ्याद्रष्टि थयो थको ज्ञानावरणादि कर्मबंधकरणशील थयो. ते कर्मबंधनो उदय थतां जीव चारे गतिओमां भमे छे. आ प्रकारे संसारनी परिपाटी छे. आ संसारमां भ्रमण करतां कोई भव्य जीवनो ज्यारे निकट संसार आवी जाय छे त्यारे जीव सम्यक्त्व ग्रहण करे छे. सम्यक्त्व ग्रहण करतां पुद्गलपिंडरूप मिथ्यात्वकर्मनो उदय मटे छे तथा मिथ्यात्वरूप विभावपरिणाम मटे छे. विभावपरिणाम मटतां शुद्धस्वरूपनो अनुभव थाय छे. आवी सामग्री मळतां जीवद्रव्य पुद्गलकर्मथी तथा विभावपरिणामथी सर्वथा भिन्न थाय छे. जीवद्रव्य पोताना अनंतचतुष्टयने प्राप्त थाय छे. द्रष्टांत आम छे के जेवी रीते सुवर्णधातु पाषाणमां ज मळेली चाली आवे छे तोपण अग्निनो संयोग पामीने पाषाणथी सुवर्ण भिन्न थाय छे. २२.
अनुभव भव मूर्तेः पार्श्ववर्ती मुहूर्तम् ।
त्यजसि झगिति मूर्त्या साकमेकत्वमोहम् ।।२३।।