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जाण्युं, पछी ते वस्त्रनो धणी जे कोई हतो तेणे छेडो पकडीने कह्युं के ‘आ वस्त्र तो मारुं छे,’ फरीने कह्युं के ‘मारुं ज छे,’ आम सांभळतां ते पुरुषे चिह्न तपास्युं अने जाण्युं के ‘मारुं चिह्न तो मळतुं नथी, माटे नक्की आ वस्त्र मारुं नथी, बीजानुं छे,’ तेने आवी प्रतीति थतां त्याग थयो घटे छे, वस्त्र पहेरेलुं ज छे तोपण त्याग घटे छे, केम के स्वामित्वपणुं छूटी गयुं छे; तेवी रीते अनादि काळथी जीव मिथ्याद्रष्टि छे तेथी कर्मसंयोगजनित छे जे शरीर, दुःखसुख, रागद्वेष आदि विभावपर्यायो तेमने पोतानां ज करीने जाणे छे अने ते-रूपे ज प्रवर्ते छे, हेय- उपादेय जाणतो नथी; आ प्रमाणे अनंत काळ भ्रमण करतां ज्यारे थोडो संसार रहे छे अने परमगुरुनो उपदेश पामे छे — उपदेश एवो छे के ‘हे जीव! जेटलां छे जे शरीर, सुख-दुःख, राग-द्वेष-मोह, जेमने तुं पोतानां करीने जाणे छे अने एमां रत थयो छे ते तो सघळांय तारां नथी, अनादि कर्मसंयोगनी उपाधि छे’ — त्यारे एवुं वारंवार सांभळतां जीववस्तुनो विचार ऊपज्यो के ‘जीवनुं लक्षण तो शुद्ध चिद्रूप छे, तेथी आ बधी उपाधि तो जीवनी नथी, कर्मसंयोगनी उपाधि छे’; आवो निश्चय जे काळे थयो ते ज काळे सकळ विभावभावोनो त्याग छे; शरीर, सुख, दुःख जेम हतां तेम ज छे, परिणामोथी त्याग छे, केम के स्वामित्वपणुं छूटी गयुं छे. आनुं ज नाम अनुभव छे, आनुं ज नाम सम्यक्त्व छे. आ प्रमाणे द्रष्टान्तनी माफक] — ऊपजी छे द्रष्टि अर्थात् शुद्ध चिद्रूपनो अनुभव जेने एवो जे कोई जीव छे ते (अनवम्) अनादि काळथी चाल्या आवता (वृत्तिम्) जे कर्मपर्याय साथे एकत्वपणाना संस्कार ते-रूपे (न अवतरति) परिणमतो नथी. भावार्थ आम छे — कोई जाणशे के जेटलां पण शरीर, सुख, दुःख, राग, द्वेष, मोह छे तेमनी त्यागबुद्धि कंईक अन्य छे — कारणरूप छे तथा शुद्ध चिद्रूपमात्रनो अनुभव कंईक अन्य छे — कार्यरूप छे. तेना प्रत्ये उत्तर आम छे के राग, द्वेष, मोह, शरीर, सुख, दुःख आदि विभावपर्यायरूप परिणमता जीवना जे काळे आवा अशुद्ध परिणमनरूप संस्कार छूटी जाय छे ते ज काळे तेने अनुभव छे. तेनुं विवरण — शुद्ध चेतनामात्रनो आस्वाद आव्या विना अशुद्ध भावरूप परिणाम छूटता नथी अने अशुद्ध संस्कार छूट्या विना शुद्ध स्वरूपनो अनुभव थतो नथी. तेथी जे कांई छे ते एक ज काळ, एक ज वस्तु, एक ज ज्ञान, एक ज स्वाद छे. हवे जेने शुद्ध अनुभव थयो छे ते जीव जेवो छे तेवो ज कहे छे. २९.