Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 31.

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समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-
(मालिनी)
इति सति सह सर्वैरन्यभावैर्विवेके
स्वयमयमुपयोगो बिभ्रदात्मानमेकम्
प्रकटितपरमार्थैर्दर्शनज्ञानवृत्तैः
कृतपरिणतिरात्माराम एव प्रवृत्तः
।।३१।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘एव अयम् उपयोगः स्वयम् प्रवृत्तः’’ (एव) निश्चयथी जे अनादिनिधन छे एवुं (अयम्) आ ज (उपयोगः) जीवद्रव्य (स्वयम्) जेवुं द्रव्य हतुं तेवुं शुद्धपर्यायरूप (प्रवृत्तः) प्रगट थयुं. भावार्थ आम छे के जीवद्रव्य शक्तिरूपे तो शुद्ध हतुं परन्तु कर्मसंयोगपणे अशुद्धरूप परिणम्युं हतुं; हवे अशुद्धपणुं जवाथी जेवुं हतुं तेवुं थई गयुं. केवुं थतां शुद्ध थयुं? ‘‘इति सर्वैः अन्यभावैः सह विवेके सति’’ (इति) पूर्वोक्त प्रकारे (सर्वैः) शुद्ध चिद्रूपमात्रथी भिन्न एवां समस्त (अन्यभावैः सह) द्रव्यकर्म-भावकर्म-नोकर्मथी (विवेके) शुद्ध चैतन्यनुं भिन्नपणुं (सति) थतां. भावार्थ आम छे के जेम सुवर्णना पानाने तपावतां कालिमा जती रहेवाथी सहज ज सुवर्णमात्र रही जाय छे तेम मोह- राग-द्वेषरूप विभावपरिणाममात्र जतां सहज ज शुद्ध चैतन्यमात्र रही जाय छे. केवी थती थकी जीववस्तु प्रगट थाय छे?

‘‘एकम् आत्मानम् बिभ्रत्’’ (एकम्)

निर्भेद-निर्विकल्प चिद्रूप वस्तु एवो जे (आत्मानम्) आत्मस्वभाव ते-रूप (बिभ्रत्) परिणमी छे. वळी केवो छे आत्मा? ‘‘दर्शनज्ञानवृत्तैः कृतपरिणतिः’’ (दर्शन) श्रद्धा- रुचि-प्रतीति, (ज्ञान) जाणपणुं, (वृत्तैः) शुद्ध परिणतिएवां जे रत्नत्रय ते-रूपे (कृत) कर्युं छे (परिणतिः) परिणमन जेणे एवो छे. भावार्थ आम छे के मिथ्यात्वपरिणतिनो त्याग थतां, शुद्ध स्वरूपनो अनुभव थतां, साक्षात् रत्नत्रय घटे छे. केवां छे दर्शन-ज्ञान-चारित्र? ‘‘प्रकटितपरमार्थेः’’ (प्रकटित) प्रगट कर्यो छे (परमार्थैः) सकलकर्मक्षयलक्षण मोक्ष जेमणे एवां छे. भावार्थ आम छे के ‘सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः’ एवुं कथन तो सर्व जैनसिद्धान्तमां छे अने ते ज प्रमाण छे. वळी केवो छे शुद्धजीव? ‘‘आत्माराम’’ (आत्म) पोते ज छे