कहानजैनशास्त्रमाळा ]
(आराम) क्रीडावन जेनुं एवो छे. भावार्थ आम छे के चेतनद्रव्य अशुद्ध अवस्थारूपे परनी साथे परिणमतुं हतुं ते तो मट्युं, सांप्रत (वर्तमानकाळे) स्वरूपपरिणमनमात्र छे. ३१.
आलोकमुच्छलति शान्तरसे समस्ताः ।
प्रोन्मग्न एष भगवानवबोधसिन्धुः ।।३२।।
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘एष भगवान् प्रोन्मग्नः’’ (एष) सदा काळ प्रत्यक्षपणे चेतनस्वरूप छे एवो (भगवान्) भगवान अर्थात् जीवद्रव्य (प्रोन्मग्नः) शुद्धांगस्वरूप देखाडीने प्रगट थयो. भावार्थ आम छे के आ ग्रंथनुं नाम नाटक अर्थात् अखाडो छे. त्यां पण प्रथम ज शुद्धांग नाचे छे तथा अहीं पण प्रथम ज जीवनुं शुद्ध स्वरूप प्रगट थयुं. केवो छे भगवान?
ज्ञानमात्रनुं (सिन्धुः) पात्र छे. अखाडामां पण पात्र नाचे छे, अहीं पण ज्ञानपात्र जीव छे. हवे जे रीते प्रगट थयो ते कहे छे — ‘‘भरेण विभ्रमतिरस्करिणीं आप्लाव्य’’ (भरेण) मूळथी उखाडीने दूर करी. ते कोण? (विभ्रम) विपरीत अनुभव — मिथ्यात्वरूप परिणाम ते ज छे (तिरस्करिणीं) शुद्धस्वरूप-आच्छादनशील अंतर्जवनिका (अंदरनो पडदो) तेने (आप्लाव्य) मूळथी ज दूर करीने. भावार्थ आम छे के अखाडामां प्रथम ज अंतर्जवनिका कपडानी होय छे, तेने दूर करीने शुद्धांग नाचे छे; अहीं पण अनादि काळथी मिथ्यात्वपरिणति छे, ते छूटतां शुद्धस्वरूप परिणमे छे. शुद्धस्वरूप प्रगट थतां जे कांई छे ते ज कहे छे — ‘‘अमी समस्ताः लोकाः शान्तरसे समम् एव मज्जन्तु’’ (अमी) जे विद्यमान छे एवा (समस्ताः) बधा (लोकाः) जीवो, (शान्तरसे) जे अतीन्द्रियसुखगर्भित छे एवो शुद्धस्वरूपनो अनुभव तेमां (समम् एव) एकीवखते ज (मज्जन्तु) मग्न थाओ — तन्मय थाओ. भावार्थ आम छे के अखाडामां तो शुद्धांग देखाडे छे, त्यां जेटला देखनारा छे ते बधा एकीसाथे