Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 32.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

जीव-अधिकार
३५

(आराम) क्रीडावन जेनुं एवो छे. भावार्थ आम छे के चेतनद्रव्य अशुद्ध अवस्थारूपे परनी साथे परिणमतुं हतुं ते तो मट्युं, सांप्रत (वर्तमानकाळे) स्वरूपपरिणमनमात्र छे. ३१.

(वसन्ततिलका)
मज्जन्तु निर्भरममी सममेव लोका
आलोकमुच्छलति शान्तरसे समस्ताः
आप्लाव्य विभ्रमतिरस्करिणीं भरेण
प्रोन्मग्न एष भगवानवबोधसिन्धुः
।।३२।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘एष भगवान् प्रोन्मग्नः’’ (एष) सदा काळ प्रत्यक्षपणे चेतनस्वरूप छे एवो (भगवान्) भगवान अर्थात् जीवद्रव्य (प्रोन्मग्नः) शुद्धांगस्वरूप देखाडीने प्रगट थयो. भावार्थ आम छे के आ ग्रंथनुं नाम नाटक अर्थात् अखाडो छे. त्यां पण प्रथम ज शुद्धांग नाचे छे तथा अहीं पण प्रथम ज जीवनुं शुद्ध स्वरूप प्रगट थयुं. केवो छे भगवान?

‘‘अवबोधसिन्धुः’’ (अवबोध)

ज्ञानमात्रनुं (सिन्धुः) पात्र छे. अखाडामां पण पात्र नाचे छे, अहीं पण ज्ञानपात्र जीव छे. हवे जे रीते प्रगट थयो ते कहे छे‘‘भरेण विभ्रमतिरस्करिणीं आप्लाव्य’’ (भरेण) मूळथी उखाडीने दूर करी. ते कोण? (विभ्रम) विपरीत अनुभव मिथ्यात्वरूप परिणाम ते ज छे (तिरस्करिणीं) शुद्धस्वरूप-आच्छादनशील अंतर्जवनिका (अंदरनो पडदो) तेने (आप्लाव्य) मूळथी ज दूर करीने. भावार्थ आम छे के अखाडामां प्रथम ज अंतर्जवनिका कपडानी होय छे, तेने दूर करीने शुद्धांग नाचे छे; अहीं पण अनादि काळथी मिथ्यात्वपरिणति छे, ते छूटतां शुद्धस्वरूप परिणमे छे. शुद्धस्वरूप प्रगट थतां जे कांई छे ते ज कहे छे‘‘अमी समस्ताः लोकाः शान्तरसे समम् एव मज्जन्तु’’ (अमी) जे विद्यमान छे एवा (समस्ताः) बधा (लोकाः) जीवो, (शान्तरसे) जे अतीन्द्रियसुखगर्भित छे एवो शुद्धस्वरूपनो अनुभव तेमां (समम् एव) एकीवखते ज (मज्जन्तु) मग्न थाओतन्मय थाओ. भावार्थ आम छे के अखाडामां तो शुद्धांग देखाडे छे, त्यां जेटला देखनारा छे ते बधा एकीसाथे