Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 34.

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समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

वळी केवुं थतुं थकुं? ‘‘धीरोदात्तम्’’ (धीर) अडोल अने (उदात्तम्) बधाथी मोटुं एवुं थतुं थकुं. वळी केवुं थतुं थकुं? ‘‘अनाकुलं’’ इन्द्रियजनित सुखदुःखथी रहित अतीन्द्रिय सुखरूप बिराजमान थतुं थकुं. आवो जीव जे रीते प्रगट थयो ते कहे छे‘‘आसंसारनिबद्धबन्धनविधिध्वंसात्’’ (आसंसार) अनादि काळथी (निबद्ध) जीव साथे मळेलां चाल्यां आवतां (बन्धनविधि) ज्ञानावरणकर्म, दर्शनावरणकर्म, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र, अन्तराय एवां छे जे द्रव्यपिंडरूप आठ कर्म तथा भावकर्मरूप छे जे राग-द्वेष-मोहपरिणामइत्यादि छे जे बहु विकल्पो, तेमना (ध्वंसात्) विनाशथी जीवस्वरूप जेवुं कह्युं छे तेवुं छे. भावार्थ आम छे के जेवी रीते जळ अने कादव जे काळे एकत्र मळेलां छे ते ज काळे जो स्वरूपनो अनुभव करवामां आवे तो कादव जळथी भिन्न छे, जळ पोताना स्वरूपे छे, तेवी रीते संसार-अवस्थामां जीव-कर्म बंधपर्यायरूपे एक क्षेत्रे मळेलां छे ते ज अवस्थामां जो शुद्ध स्वरूपनो अनुभव करवामां आवे तो समस्त कर्म जीवस्वरूपथी भिन्न छे, जीवद्रव्य स्वच्छस्वरूपे जेवुं कह्युं तेवुं छे. आवी बुद्धि जे रीते ऊपजी ते कहे छे‘‘यत्पार्षदान् प्रत्याययत्’’

(यत्) जे कारणथी (पार्षदान्)

गणधर-मुनीश्वरोने (प्रत्याययत्) प्रतीति उपजावीने. क्या कारणथी प्रतीति ऊपजी ते ज कहे छे‘‘जीवाजीवविवेकपुष्कलद्रशा’’ (जीव) चेतन्यद्रव्य अने (अजीव) जडकर्म- नोकर्म-भावकर्म तेमना (विवेक) भिन्नभिन्नपणारूप (पुष्क ल) विस्तीर्ण (द्रशा) ज्ञानद्रष्टिथी. जीव अने कर्मनो भिन्नभिन्न अनुभव करतां जीव जेवो कह्यो छे तेवो छे. १३३.

(मालिनी)
विरम किमपरेणाकार्यकोलाहलेन
स्वयमपि निभृतः सन् पश्य षण्मासमेकम्
हृदयसरसि पुंसः पुद्गलाद्भिन्नधाम्नो
ननु किमनुपलब्धिर्भाति किं चोपलब्धिः
।।२-३४।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘विरम अपरेण अकार्यकोलाहलेन कि म्’’ (विरम) हे जीव! विरक्त था, हठ न कर, (अपरेण) मिथ्यात्वरूप छे अने (अकार्य) कर्मबंधने