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द्रव्यथी नीपज्यो छे ते ज द्रव्य छे, (कथञ्चन न अन्यत्) निश्चयथी अन्य द्रव्यरूप नथी थयो. ते ज द्रष्टांत द्वारा कहे छे — ‘‘इह रुक्मेण असिकोशं निर्वृत्तम्’’ (इह) प्रत्यक्ष छे के (रुक्मेण) चांदीधातुथी (असिकोशं) तलवारनुं म्यान (निर्वृत्तम्) घडीने मोजूद कर्युं त्यां ‘‘रुक्मं पश्यन्ति, कथञ्चन न असिम्’’ (रुक्मं) जे म्यान मोजूद थयुं ते वस्तु तो चांदी ज छे (पश्यन्ति) एम प्रत्यक्षपणे सर्व लोक देखे छे अने माने छे; (कथञ्चन) ‘चांदीनी तलवार’ एम कथनमां तो कहेवाय छे तथापि (न असिम्) चांदीनी तलवार नथी. भावार्थ आम छे के चांदीना म्यानमां तलवार रहे छे ते कारणे ‘चांदीनी तलवार’ एम कहेवामां आवे छे तोपण चांदीनुं म्यान छे, तलवार लोढानी छे, चांदीनी तलवार नथी. ६-३८.
निर्माणमेकस्य हि पुद्गलस्य ।
यतः स विज्ञानघनस्ततोऽन्यः ।।७-३९।।
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘हि इदं वर्णादिसामग्य्राम् एकस्य पुद्गलस्य निर्माणम् विदन्तु’’ (हि) निश्चयथी (इदं) विद्यमान (वर्णादिसामग्य्राम्) गुणस्थान, मार्गणास्थान, द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म इत्यादि जेटला अशुद्ध पर्यायो छे ते बधाय (एकस्य पुद्गलस्य) एकला पुद्गलद्रव्यनुं (निर्माणम्) कार्य छे अर्थात् पुद्गलद्रव्यना चितरामण जेवा छे एम (विदन्तु) हे जीवो! निःसंदेहपणे जाणो. ‘‘तत्ः इदं पुद्गलः एव अस्तु, न आत्मा’’ (ततः) ते कारणथी (इदं) शरीरादि सामग्री (पुद्गलः) जे पुद्गलद्रव्यथी थई छे ते ज पुद्गलद्रव्य छे, (एव) निश्चयथी (अस्तु) ते ज छे; (न आत्मा) आत्मा अजीवद्रव्यरूप थयो नथी. ‘‘यतः सः विज्ञानघनः’’ (यतः) जेथी (सः) जीवद्रव्य (विज्ञानघनः) ज्ञानगुणनो समूह छे, ‘‘ततः अन्यः’’ (ततः) तेथी (अन्यः) जीवद्रव्य भिन्न छे, शरीरादि परद्रव्य भिन्न छे. भावार्थ आम छे के लक्षणभेदे वस्तुनो भेद होय छे, तेथी चैतन्यलक्षणे जीववस्तु भिन्न छे,