कहानजैनशास्त्रमाळा ]
अचेतनलक्षणे शरीरादि भिन्न छे. अहीं कोई आशंका करे छे के कहेवामां तो एम ज कहेवाय छे के ‘एकेन्द्रिय जीव, बे-इन्द्रिय जीव’ इत्यादि; देव जीव, मनुष्य जीव’ इत्यादि; ‘रागी जीव, द्वेषी जीव’ इत्यादि. उत्तर आम छे के कहेवामां तो व्यवहारथी एम ज कहेवाय छे, निश्चयथी एवुं कहेवुं जूठुं छे. ते (हवे) कहे छे. ७-३९.
खंडान्वय सहित अर्थः — द्रष्टांत कहे छे — ‘‘चेत् कुम्भः घृतमयः न’’ (चेत्) जो एम छे के (कुम्भः) घडो (घृतमयः न) घीनो तो नथी, माटीनो छे, ‘‘घृतकुम्भामिधाने अपि’’ (घृतकुम्भ) ‘घीनो घडो’ (अभिधाने अपि) एम कहेवाय छे तथापि घडो माटीनो छे, [भावार्थ आम छे — जे घडामां घी राखवामां आवे छे ते घडाने जोके ‘घीनो घडो’ एम कहेवाय छे तोपण घडो माटीनो छे, घी भिन्न छे,] तो तेवी रीते ‘‘वर्णादिमज्जीवः जल्पने अपि जीवः तन्मयः न’’ (वर्णादिमज्जीवः जल्पने अपि) जोके ‘शरीर-सुख-दुःख-राग- द्वेषसंयुक्त जीव’ एम कहेवाय छे तोपण (जीवः तन्मयः न) चेतनद्रव्य एवो जीव तो शरीर नथी, जीव तो मनुष्य नथी; जीव चेतनस्वरूप भिन्न छे. भावार्थ आम छे के आगममां गुणस्थानोनुं स्वरूप कह्युं छे त्यां ‘देव जीव, मनुष्य जीव, रागी जीव, द्वेषी जीव’ इत्यादि घणा प्रकारे कह्युं छे, पण ते सघळुंय कहेवुं व्यवहारमात्रथी छे; द्रव्यस्वरूप जोतां एवुं कहेवुं जूठुं छे. कोई प्रश्न करे छे के जीव केवो छे? उत्तर – जेवो छे तेवो हवे कहे छे. ८ – ४०.
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘तु जीवः चैतन्यम् स्वयं उच्चैः चकचकायते’’ (तु) द्रव्यनुं स्वरूप विचारतां (जीवः) आत्मा (चैतन्यम्) चैतन्यस्वरूप छे, (स्वयं) पोताना