Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 43.

< Previous Page   Next Page >


Page 45 of 269
PDF/HTML Page 67 of 291

 

कहानजैनशास्त्रमाळा ]

अजीव अधिकार
४५

रस, गंध अने स्पर्शथी (सहितः) संयुक्त छे, केम के एक पुद्गलद्रव्य एवुं पण छे; (तथा विरहितः) तथा वर्ण, रस, गंध अने स्पर्शथी रहित पण छे, केम के धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, काळद्रव्य अने आकाशद्रव्य ए चार द्रव्यो बीजां पण छे, ते अमूर्तद्रव्यो कहेवाय छे. ते अमूर्तपणुं अचेतनद्रव्योने पण छे; तेथी अमूर्तपणुं जाणीने जीवनो अनुभव नथी करातो, चेतन जाणीने जीवनो अनुभव कराय छे. १०४२.

(वसंततिलका)
जीवादजीवमिति लक्षणतो विभिन्नं
ज्ञानी जनोऽनुभवति स्वयमुल्लसन्तम्
अज्ञानिनो निरवधिप्रविजृम्भितोऽयं
मोहस्तु तत्कथमहो बत नानटीति
।।११-४३।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘ज्ञानी जनः लक्षणतः जीवात् अजीवम् विभिन्नं इति स्वयं अनुभवति’’ (ज्ञानी जनः) सम्यग्द्रष्टि जीव, (लक्षणतः) जीवनुं लक्षण चेतना तथा अजीवनुं लक्षण जड एवो मोटो भेद छे तेथी (जीवात्) जीवद्रव्यथी (अजीवम्) अजीवद्रव्यपुद्गल आदि (विभिन्नं) सहज ज भिन्न छे, (इति) आ प्रकारे (स्वयं) स्वानुभवप्रत्यक्षपणे (अनुभवति) आस्वाद करे छे. केवुं छे अजीवद्रव्य? ‘‘उल्लसन्तम्’’ पोताना गुण-पर्यायथी प्रकाशमान छे. ‘‘तत् तु अज्ञानिनः अयं मोहः कथम् अहो नानटीति बत’’ (तत् तु) आम छे तो पछी (अज्ञानिनः) मिथ्याद्रष्टि जीवने (अयं) जे प्रगट छे एवो (मोहः) जीव-कर्मना एकत्वरूप विपरीत संस्कार (कथम् नानटीति) केम प्रवर्ती रह्यो छे (बत अहो) ए आश्चर्य छे! भावार्थ आम छे के सहज ज जीव- अजीव भिन्न छे एवुं अनुभवतां तो बराबर छे, सत्य छे; मिथ्याद्रष्टि जे एक करीने अनुभवे छे ते आवो अनुभव कई रीते आवे छे ए मोटो अचंबो छे. केवो छे मोह? ‘‘निरवधिप्रविजृम्भितः’’ (निरवधि) अनादि काळथी (प्रविजृम्भितः) संतानरूपे प्रसरी रह्यो छे. ११४३.