५४
(जीव तो) एवो छे. तो पछी केवुं छे पुद्गल? ते ज कहे छे — ‘‘(इमां स्वपरपरिणतिं) अजानन्’’ (इमां) प्रगट छे एवां (स्व) पोतानां अने (पर) अन्य समस्त परद्रव्योनां (परिणतिं) द्रव्य-गुण-पर्याय आदिने (अजानन्) नथी जाणतुं — एवुं छे पुद्गलद्रव्य. भावार्थ आम छे के जीवद्रव्य ज्ञाता छे, पुद्गलकर्म ज्ञेय छे — एवो जीवने अने कर्मने ज्ञेयज्ञायकसंबंध छे तोपण व्याप्यव्यापकसंबंध नथी; द्रव्योनुं अत्यन्त भिन्नपणुं छे, एकपणुं नथी. केवो छे भेदज्ञानरूप अनुभव? ‘‘क्रकचवत् अदयं सद्यः भेदं उत्पाद्य’’ जेणे करवतनी माफक निर्दय रीते (उग्र रीते) शीघ्र ज जीव अने पुद्गलनो भेद उत्पन्न कर्यो छे. ५-५०.
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘यः परिणमति स कर्ता भवेत्’’ (यः) जे कोई सत्तामात्र वस्तु ते (परिणमति) जे कोई अवस्था छे ते-रूप पोते ज छे तेथी (स कर्ता भवेत्) ते अवस्थानी ते सत्तामात्र वस्तु ‘कर्ता’ पण होय छे; अने आम कहेवुं विरुद्ध पण नथी, कारण के अवस्था पण छे. ‘‘यः परिणामः तत् कर्म’’ (यः परिणामः) ते द्रव्यनो जे कोई स्वभाव — परिणाम छे (तत् कर्म) ते — द्रव्यनो परिणाम — ‘कर्म’ ए नामथी कहेवाय छे. ‘‘या परिणतिः सा क्रिया’’ (या परिणतिः) द्रव्यनुं जे कंई पूर्व अवस्थाथी उत्तर अवस्थारूप थवुं (सा क्रिया) तेनुं नाम ‘क्रिया’ कहेवाय छे. जेवी रीते माटी घटरूप थाय छे तेथी माटी ‘कर्ता’ कहेवाय छे, नीपजेलो घडो ‘कर्म’ कहेवाय छे तथा माटीपिंडथी घडारूप थवुं ‘क्रिया’ कहेवाय छे; तेवी ज रीते सत्त्वरूप वस्तु ‘कर्ता’ कहेवाय छे, ते द्रव्यनो नीपजेलो परिणाम ‘कर्म’ कहेवाय छे अने ते क्रियारूप थवुं ‘क्रिया’ कहेवाय छे.
न भिन्नं’’ (वस्तुतया) सत्तामात्र वस्तुना स्वरूपनो अनुभव करतां (त्रयम्) कर्ता-कर्म- क्रिया एवा त्रण भेद (अपि) निश्चयथी (न भिन्नं) त्रण सत्त्व तो नथी, एक ज सत्त्व छे. भावार्थ आम छे के कर्ता-कर्म-क्रियानुं स्वरूप तो आ प्रकारे छे, तेथी ज्ञानावरणादि द्रव्यपिंडरूप कर्मनो कर्ता जीवद्रव्य छे एम जाणवुं जूठुं छे; केम के