कहानजैनशास्त्रमाळा ]
जीवद्रव्यनुं अने पुद्गलद्रव्यनुं एक सत्त्व नथी (त्यां) कर्ता-कर्म-क्रियानी घटना केवी? ६ – ५१.
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘सदा एकः परिणमति’’ (सदा) त्रणे काळे (एकः) सत्तामात्र वस्तु (परिणमति) पोतानामां अवस्थान्तररूप थाय छे; ‘‘सदा एकस्य परिणामः जायते’’ (सदा) त्रिकाळगोचर (एकस्य) सत्तामात्र छे वस्तु तेनी (परिणामः जायते) अवस्था वस्तुरूप छे; [भावार्थ आम छे के जेम सत्तामात्र वस्तु अवस्थारूप छे तेम अवस्था पण वस्तुरूप छे;] ‘‘परिणतिः एकस्य स्यात्’’ (परिणतिः) क्रिया (एकस्य स्यात्) ते पण सत्तामात्र वस्तुनी छे; [भावार्थ आम छे के क्रिया पण वस्तुमात्र छे, वस्तुथी भिन्न सत्त्व नथी;] ‘‘यतः अनेकम् अपि एकम् एव’’ (यतः) कारण के (अनेकम्) एक सत्त्वना कर्ता-कर्म-क्रियारूप त्रण भेद (अपि) – एवुं पण जोके छे तोपण (एकम् एव) सत्तामात्र वस्तु छे, त्रणेय विकल्पो जूठा छे. भावार्थ आम छे के ज्ञानावरणादि द्रव्यरूप पुद्गलपिंड-कर्मनो कर्ता जीववस्तु छे एवुं जाणपणुं मिथ्याज्ञान छे, केम के एक सत्त्वमां कर्ता-कर्म-क्रिया उपचारथी कहेवाय छे; भिन्न सत्त्वरूप छे जे जीवद्रव्य अने पुद्गलद्रव्य तेमने कर्ता-कर्म-क्रिया क्यांथी घटशे? ७ – ५२.
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘खलु उभौ न परिणमतः’’ (खलु) एवो निश्चय छे के (उभौ) एक चेतनालक्षण जीवद्रव्य अने एक अचेतन कर्म-पिंडरूप पुद्गलद्रव्य (न परिणमतः) मळीने एक परिणामरूपे परिणमतां नथी; [भावार्थ आम छे के जीवद्रव्य पोतानी शुद्ध चेतनारूपे अथवा अशुद्ध चेतनारूपे व्याप्य-व्यापकपणे परिणमे